الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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[صلاة الاستخارة في كل حاجة مهمة]

يفعل ذلك في كل حاجة مهمة يريد فعلها و قضاءها ثم يشرع في حاجته فإن كان له فيها خيرة عند اللّٰه يسر له أسبابها إلى أن تحصل فتكون عاقبتها محمودة و إن تعذر شيء من أسبابها عليه و لم يتفق تحصيلها بيسر فلا يضاد القدر و يعلم أنه لو كان له فيها خيرة عند اللّٰه ما تعذرت أسبابها فيعلم إن اللّٰه قد اختار له تركها فلا يتألم لذلك و سيحمد عاقبة تركها

[صلاة الاستخارة و أهل اللّٰه]

و ينبغي لأهل اللّٰه أن يصلوا صلاة الاستخارة في وقت معين يعنونه من ليل أو نهار في كل يوم فإذا قالوا الدعاء يعد السلام من الركعتين يقولون في الموضع الذي أمر أن يسمى حاجته كما سنذكره يقول اللهم إن كنت تعلم أن جميع ما أتحرك فيه في حقي و في حق غيري و جميع ما يتحرك فيه غيري في حقي و في حق أهلي و ولدي و ما ملكت يميني خير لي في ديني و دنياي و عاجل أمري و أجله من ساعتي هذه إلى مثلها من اليوم الآخر فيسره لي و أقدره و رحنى به و إن كنت تعلم أن جميع ما أتحرك فيه في حقي و في حق غيري و جميع ما يتحرك فيه غيري في حقي و في حق أهلي و ولدي و ما ملكت يميني من ساعتي هذه إلى مثلها من اليوم الآخر شر لي في ديني و دنياي و عاجل أمري و آجله كما سيأتي في الدعاء بعد هذا إن شاء اللّٰه فإنه إذا فعل ذلك ما يتحرك بحركة و لا يتحرك في حقه بحركة إلا كان له فيها خير محقق فعلا أو تركا جربت هذا دائما يفعل هذا في كل يوم في وقت بعينه يلزمه لا يغيره

[صيغة دعاء الاستخارة]

و صورة دعا الاستخارة اللهم إني أستخيرك بعلمك و أستقدرك بقدرتك و أسألك من فضلك العظيم فإنك تقدر و لا أقدر و تعلم و لا أعلم و أنت علام الغيوب اللهم إن كنت تعلم أن هذا الأمر و تسمى حاجتك خير لي في ديني و معاشي و عاقبة أمري أو قال عاجل أمري و آجله فاقدره لي و يسره لي ثم بارك لي فيه و إن كنت تعلم أن هذا الأمر و تذكر حاجتك شر لي في ديني و معاشي و عاقبة أمري أو قال عاجل أمري و آجله فاصرفه عني و اصرفني عنه و أقدر على الخير حيث كان ثم أرضني به



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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