الفتوحات المكية

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[أحكام المياه الأربعة]

فالحكم في الماء على ما ذكرناه على أربع مراتب إذا خالطته النجاسة أو لم تخالطه حكم بأنه طاهر مطهر و حكم بأنه طاهر غير مطهر و حكم بأنه غير مطهر و لا طاهر و حكم بأنه مطهر غير طاهر فالطاهر المطهر هو الماء الذي لم تخالطه نجاسة و الطاهر غير المطهر هو الماء الذي يخالطه ما ليس بنجس بحيث أن يزيل عنه اسم الماء المطلق مثل ماء الزعفران و غيره و حكم بأنه غير طاهر و لا مطهر و هو الماء الذي غيرت النجاسة أحد أوصافه و صاحب هذا الحكم يرد الحديث الذي احتج به علينا فإن الشارع قال لا ينجسه شيء فكيف اعتبره هذا المحتج به هنا و لم يعتبره في الوجه الذي ذهبنا إليه في أنه مطهر غير طاهر و يلزمه ذلك ضرورة و ليس عنده دليل شرعي يرده و الحكم الرابع مطهر غير طاهر و هو الفصل الذي نحن بسبيله فإنه الماء الذي خالطته النجاسة و لم تغير أحد أوصافه و من قائل بالفرق بين القليل و الكثير فقالوا إن كان كثيرا لم ينجس و إن كان قليلا كان نجسا و لم يحد فيه حدا بل قال بأنه ينجس و لو لم يتغير أحد أوصافه

[الاختلاف في حد القليل و الكثير من المياه]

ثم اختلف هؤلاء في الحد بين القليل و الكثير و الخلاف في نفس الحد مشهور في المذاهب لا في نص الشرع الصحيح فإن الأحاديث في ذلك قد تكلم فيها مثل حديث القلتين و حديث الأربعين قلة ثم الخلاف بينهم في حد القلة و يتفرع على هذا الباب مسائل كثيرة مثل ورود الماء على النجاسة و ورود النجاسة على الماء و البول في الماء الدائم و غير ذلك و للناس في ذلك مذاهب كثيرة ليس هذا الكتاب موضعها فإنا ما قصدنا استقصاء جميع ما يتعلق من الأحكام بهذه الطهارة من جهة تفريع المسائل و إنما القصد الأمهات منها لأجل الاعتبار فيها بحكم الباطن فجردنا في هذا الباب نحوا من ثمانين بابا نذكرها إن شاء اللّٰه كلها بابا بابا و هكذا أفعل إن شاء اللّٰه في سائر العبادات التي عزمنا على ذكرها في هذا الكتاب من صلاة و زكاة و صيام و حج و اللّٰه المؤيد لا رب غيره

(وصل في حكم الباطن

[العلم الإلهي المنزه إذا خالطه علم الصفات الذي يوهم التشبيه]

و أما حكم الباطن فيما ذكرناه في هذا الباب)و هو الماء الذي تخالطه النجاسة و لم تغير أحد أوصافه فهو العلم الإلهي الذي يقتضي التنزيه عن صفات البشر فإذا خالطه من علم الصفات التي تتوهم منها المناسبة بينه و بين خلقه فوقع في نفس العالم به من ذلك نوع تشويش فاستهلك ذلك القدر من العلم بالصفات التي يقع بها الاشتراك في العلم الذي يقتضي التنزيه من جهة دليل العقل و من



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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