الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 118 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿إِنِّي أُشْهِدُ اللّٰهَ وَ اشْهَدُوا أَنِّي بَرِيءٌ مِمّٰا تُشْرِكُونَ﴾ [هود:54] فأشهد عليه السّلام قومه مع كونهم مكذبين به على نفسه بالبراءة من الشرك بالله و الإقرار بأحديته لما علم عليه السّلام إن اللّٰه سبحانه سيوقف عباده بين يديه و يسألهم عما هو عالم به لإقامة الحجة لهم أو عليهم حتى يؤدي كل شاهد شهادته و «قد ورد أن المؤذن يشهد له مدى صوته من رطب و يابس و كل من سمعه و لهذا يدبر الشيطان عند الأذان و له حصاص و في رواية و له ضراط» و ذلك حتى لا يسمع نداء المؤذن بالشهادة فيلزمه أن يشهد له فيكون بتلك الشهادة له من جملة من يسعى في سعادة المشهود له و هو عدو محض ليس له إلينا خير البتة لعنه اللّٰه و إذا كان العدو لا بد أن يشهد لك بما أشهدته به على نفسك فأحرى أن يشهد لك وليك و حبيبك و من هو على دينك و ملتك و أحرى أن تشهده أنت في الدار الدنيا على نفسك بالوحدانية و الايمان

[الشهادة الاولى]

فيا إخوتي و يا أحبائي رضي اللّٰه عنكم أشهدكم عبد ضعيف مسكين فقير إلى اللّٰه تعالى في كل لحظة و طرفة و هو مؤلف هذا الكتاب و منشئه أشهدكم على نفسه بعد أن أشهد اللّٰه تعالى و ملائكته و من حضره من المؤمنين و سمعه أنه يشهد قولا و عقدا إن اللّٰه تعالى إله واحد لا ثاني له في ألوهيته منزه عن الصاحبة و الولد مالك لا شريك له ملك لا وزير له صانع لا مدبر معه موجود بذاته من غير افتقار إلى موجد يوجده بل كل موجود سواه مفتقر إليه تعالى في وجوده فالعالم كله موجود به و هو وحده متصف بالوجود لنفسه لا افتتاح لوجوده و لا نهاية لبقائه بل وجود مطلق غير مقيد قائم بنفسه ليس بجوهر متحيز فيقدر له المكان و لا بعرض فيستحيل عليه البقاء و لا بجسم فتكون له الجهة و التلقاء مقدس عن الجهات و الأقطار مرئي بالقلوب و الأبصار إذا شاء استوى على عرشه كما قاله و على المعنى الذي أراده كما إن العرش و ما سواه به استوى و له الآخرة و الأولى ليس له مثل معقول و لا دلت عليه العقول لا يحده زمان و لا يقله مكان بل كان و لا مكان و هو على ما عليه كان خلق المتمكن و المكان و أنشأ الزمان و قال أنا الواحد الحي لا يئوده حفظ المخلوقات و لا ترجع إليه صفة لم يكن عليها من صنعة المصنوعات تعالى إن تحله الحوادث أو يحلها أو تكون بعده أو يكون قبلها بل يقال كان و لا شيء معه فإن القبل و البعد من صيغ الزمان الذي أبدعه فهو القيوم الذي لا ينام و القهار الذي لا يرام



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!