الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 10842 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«من كلام النبوة في الوصية من كتم سره كانت الخيرة في يده و من عرض نفسه للتهمة فلا يلومن من أساء به الظن و ضع أمر أخيك على أحسنه و لا تظنن بكلمة خرجت منه سواء و ما كافأت من عصى اللّٰه فيك بأفضل من أن تطيع اللّٰه عزَّ وجلَّ فيه و عليك بإخوان الصدق فإنهم زينة عند الرخاء و عصمة عند البلاء»

(حكاية)تتضمن
وصية

حدثني أبو القاسم البجائي بمراكش عن أبي عبد اللّٰه الغزال العارف الذي كان بالمرية من أقران أبي مدين و أبي عبد اللّٰه الهواري بتنس و أبي يعزى و أبي شعيب السارية و أبي الفضل اليشكري و أبي النجا و تلك الطبقة قال أبو عبد اللّٰه الغزال كان يحضر مجلس شيخنا أبي العباس بن العريف الصنهاجى رجل لا يتكلم و لا يسأل و لا يصحب واحدا من الجماعة فإذا فرغ الشيخ من الكلام خرج فلا نراه قط إلا في المجلس خاصة فوقع في نفسي منه شيء و وقعت منه على هيبة فأحببت أن أتعرف به و أعرف مكانه فتبعته عشية يوم بعد انفصالنا من مجلس الشيخ من حيث لا يشعر بي فلما كان في بعض سكك المدينة إذا بشخص قد انقض عليه من الهواء برغيف في يده فناوله إياه و انصرف فجذبته من خلفه فقلت السلام عليك فعرفني فرد علي السلام فسألته عن ذلك الشخص الذي ناوله الرغيف فتوقف فلما علم مني أني لا أبرح دون أن يعرفني قال لي هو ملك الأرزاق يأتي إلي من عند اللّٰه كل يوم بما قدر لي من الرزق حيث كنت من أرض ربي و لقد لطف اللّٰه بي في بدأ أمري و دخولي إلى هذا الطريق إذا فرغت نفقتي و بقيت بلا شيء سقط علي من الهواء و بين يدي قدر ما أشتري به ما أحتاج إليه من القوت فأنفق منه فإذا فرغ جاءني مثل ذلك من عند اللّٰه لكني ما كنت أرى شخصا قال تعالى في حق مريم ابنت عمران



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!