الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 10803 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

(وصية نبوية محمدية)

«قال رسول اللّٰه ﷺ لا خير في العيش إلا لعالم ناطق أو مستمع واع يا أيها الناس إنكم في زمان هدنة و إن السير بكم سريع و قد رأيتم الليل و النهار كيف يبليان كل جديد و يقربان كل بعيد و يأتيان بكل موعود فقال له المقداد و ما الهدنة يا رسول اللّٰه فقال ﷺ دار بلاء و انقطاع فإذا التبست عليكم الأمور كقطع الليل المظلم فعليكم بالقرآن فإنه شافع مشفع و شاهد مصدق فمن جعله أمامه قاده إلى الجنة و من جعله خلفه ساقه إلى النار هو أوضح دليل إلى خير سبيل من قال به صدق و من عمل به أجر و من حكم به عدل و إن العبد عند خروج نفسه و حلول رمسه يرى جزاء ما أسلف و قلة غناء ما خلف و لعله من باطل جمعه و من حق منعه»

(وصية نبوية بتذكرة)

«قال رسول اللّٰه ﷺ إن العبد لا يكتب في المسلمين حتى يسلم الناس من يده و لسانه و لا ينال درجة المؤمنين حتى يأمن جاره بوائقه و لا يعد من المتقين حتى يدع ما لا بأس به حذرا مما به البأس أيها الناس إنه من خاف البيات أدلج و من أدلج في السير» «وصل و إنما تعرفون عواقب أعمالكم لو قد طويت صحائف آجالكم إن نية المؤمن خير من عمله و نية المنافق شر من عمله»

(وصية فيها بشرى للمنقطعين إلى اللّٰه)

«قال رسول اللّٰه ﷺ من انقطع إلى اللّٰه كفاه كل مئونة فيها و من انقطع إلى الدنيا وكله اللّٰه إليها و من حاول أمرا بمعصية اللّٰه كان أبعد له مما رجا و أقرب مما اتقى و من طلب محامد الناس بمعاصي اللّٰه عاد حامده منهم ذاما و من أرضى الناس بسخط اللّٰه وكله اللّٰه إليهم و من أرضى اللّٰه بسخط الناس كفاه اللّٰه شرهم و من أحسن فيما بينه و بين اللّٰه كفاه اللّٰه ما بينه و بين الناس و من أصلح سريرته أصلح اللّٰه علانيته و من عمل لآخرته كفاه اللّٰه أمر دنياه»



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!