الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[من سعد بالجزاء السوائي ما بعد]

و من ذلك من سعد بالجزاء السوائي ما بعد من الباب 313 يوم الدين يوم الدنيا و الآخرة فلا اختصاص له بيوم عند القوم أقام لهم الحق في ذلك دليلا لما جهلوا ﴿ظَهَرَ الْفَسٰادُ فِي الْبَرِّ وَ الْبَحْرِ بِمٰا كَسَبَتْ أَيْدِي النّٰاسِ لِيُذِيقَهُمْ بَعْضَ الَّذِي عَمِلُوا﴾ [الروم:41] فأخبر أنه جزاء ما هو ابتداء فما ابتليت البرية و هي بريه و هذه مسألة صعبة المرتقى لا تنال إلا بالإلقاء اختلفت فيه طائفتان كبيرتان فمنعت واحدة ما أجازته أخرى و الرسل بما اختلفت فيه تترى و لا تحقق واحد ما جاء به الرسول و لا يسلك فيه سواء السبيل بل ينصر ما قام في غرضه و هو عين مرضه إلا الطبقة العليا فإنهم علموا الأمور في الدنيا فلم يتعدوا بالأمر رتبته و أنزلوه منزلته فما رأوا في الدنيا أمرا مؤلما إلا كان جزاء ما كان ابتداء

[نزاع الملإ الأعلى في الأولى]

و من ذلك نزاع الملإ الأعلى في الأولى من الباب 314 تختلف المقاصد و المقصود واحد فالطبيب يقصد نفع المريض بما يؤلمه فيرتب له الأمر المؤلم و يحكمه فإذا تألم طبيب بري عند نفسه من غير شيء جناه فيسأل الحق عن ذلك فيقول جزاء بما قدمت يداه فيقول ما قصدت إلا نفعه بما أمرته به من استعمال الأدوية المؤلمة يقال له و كذلك ما قصدنا بالجزاء المؤلم إلا نفعك بما لك من الأجر في ذلك فالأمور عند اللّٰه محكمه الست قد ألمته فخذ جزاء ما فعلته و القصد القصد فلا سبيل إلى الرد لما نبهت الشريعة باختصام الملإ الأعلى علمنا أنه من عالم الطبيعة فإن أردت أن ترفعه عنها و تنزله منزلتها منها فقل لاختلاف الأسماء و هذا أوضح ما يكون من الإيماء

[تتابع الرسل و أنشأ المثل]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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