الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

إذا تجلى لمن تجلى

و إن تدلى بمن تدلى

لما رأيت الذي تجلى

اللّٰه لا ظاهر سواه

و كل حس و كل عقل *** و كل جسم و كل شكل

[أن الأمر في التجلي قد يكون بخلاف الحكمة]

اعلم أيدنا اللّٰه و إياك أن الأمر في التجلي قد يكون بخلاف ترتيب الحكمة التي عهدت و ذلك إنا قد بينا استعداد القوابل و أن هناك ليس منع بل فيض دائم و عطاء غير محظور فلو لم يكن المتجلي له على استعداد أظهر له ذلك الاستعداد هذا المسمى تجليا ما صح أن يكون له هذا التجلي فكان ينبغي له أن لا يقوم به دك و لا صعق هذا قول المعترض علينا قلنا له يا هذا الذي قلناه من الاستعداد نحن على ذلك الحق متجل دائما و القابل لإدراك هذا التجلي لا يكون إلا باستعداد خاص و قد صح له ذلك الاستعداد فوقع التجلي في حقه فلا يخلو أن يكون له أيضا استعداد البقاء عند التجلي أو لا يكون له ذلك فإن كان له ذلك فلا بد أن يبقى و إن لم يكن له فكان له استعداد قبول التجلي و لم يكن له استعداد البقاء و لا يصح أن يكون له فإنه لا بد من اندكاك أو صعق أو فناء أو غيبة أو غشية فإنه لا يبقى له مع الشهود غير ما شهد فلا تطمع في غير مطمع و قد قال بعضهم شهود الحق فناء ما فيه لذة لا في الدنيا و لا في الآخرة فليس التفاضل و لا الفضل في التجلي و إنما التفاضل و الفضل فيما يعطي اللّٰه لهذا المتجلي له من الاستعداد و عين حصول التجلي عين حصول العلم لا يعقل بينهما بون كوجه الدليل في الدليل سواء بل هذا أتم و أسرع في الحكم و أما التجلي الذي يكون معه البقاء و العقل و إلا لالتذاذ و الخطاب و القبول فذلك التجلي الصوري و من لم ير غيره ربما حكم على التجلي بذلك مطلقا من غير تقييد و الذي ذاق الأمرين فرق و لا بد و بلغني عن الشيخ المسن شهاب الدين السهروردي ابن أخي أبي النجيب أنه يقول بالجمع بين الشهود و الكلام فعلمت مقامه و ذوقه عند ذلك فما أدري هل ارتقى بعد ذلك أم لا و علمنا أنه في مرتبة التخيل و هو المقام العام الساري في العموم و أما الخواص فيعلمونه و يزيدون بأمر ما هو ذوق العامة و هو ما أشار إليه السياري و نحن و من جرى مجرانا في التحقيق من الرجال ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]

«الباب الأحد و الخمسون و خمسمائة في معرفة حال قطب كان منزله



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