الفتوحات المكية

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الحديث بكماله فهذا الحديث من أشد ما جرعت الأولياء مرارته فإنه قاطع للوصلة بين الإنسان و بين عبوديته و إذا انقطعت الوصلة بين الإنسان و بين عبوديته من أكمل الوجوه انقطعت الوصلة بين الإنسان و بين اللّٰه فإن العبد على قدر ما يخرج به عن عبوديته ينقصه من تقريبه من سيده لأنه يزاحمه في أسمائه و أقل المزاحمة الاسمية فأبقى علينا اسم الولي و هو من أسمائه سبحانه و كان هذا الاسم قد نزعه من رسوله و خلع عليه و سماه بالعبد و الرسول و لا يليق بالله أن يسمى بالرسول فهذا الاسم من خصائص العبودية التي لا تصح أن تكون للرب و سبب إطلاق هذا الاسم وجود الرسالة و الرسالة قد انقطعت فارتفع حكم هذا الاسم بارتفاعها من حيث نسبتها بها من اللّٰه

[رسالة التبليغ و النقل]

و لما علم رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم أن في أمته من يجرع مثل هذا الكأس و علم ما يطرأ عليهم في نفوسهم من الألم لذلك رحمهم فجعل لهم نصيبا ليكونوا بذلك عبيد العبيد فقال للصحابة ليبلغ الشاهد الغائب فأمرهم بالتبليغ كما أمره اللّٰه بالتبليغ لينطلق عليهم أسماء الرسل التي هي مخصوصة بالعبيد و «قال صلى اللّٰه عليه و سلم رحم اللّٰه امرأ سمع مقالتي فوعاها فأداها كما سمعها» يعني حرفا حرفا و هذا لا يكون إلا لمن بلغ الوحي من قرآن أو سنة بلفظه الذي جاء به و هذا لا يكون إلا لنقلة الوحي من المقرءين و المحدثين ليس للفقهاء و لا لمن نقل الحديث على المعنى كما يراه سفيان الثوري و غيره نصيب و لا حظ فيه فإن الناقل على المعنى إنما نقل إلينا فهمه في ذلك الحديث النبوي و من نقل إلينا فهمه فإنما هو رسول نفسه و لا يحشر يوم القيامة فيمن بلغ الوحي كما سمعه و أدى الرسالة كما يحشر المقرئ و المحدث الناقل لفظ الرسول عينه في صف الرسل عليهم السلام فالصحابة إذا نقلوا الوحي على لفظه فهم رسل رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم و التابعون رسل الصحابة و هكذا الأمر جيلا بعد جيل إلى يوم القيامة فإن شئنا قلنا في المبلغ إلينا أنه رسول اللّٰه و إن شئنا أضفناه لمن بلغ عنه و إنما جوزنا حذف الوسائط لأن رسول اللّٰه كان يخبره جبريل عليه السلام و ملك من الملائكة و لا نقول فيه رسول جبريل و إنما نقول فيه رسول اللّٰه كما قال اللّٰه تعالى ﴿مُحَمَّدٌ رَسُولُ اللّٰهِ وَ الَّذِينَ مَعَهُ﴾ [الفتح:29] و قال عز و جل



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