الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 9243 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و عند ما انفجرت أنوارها و بدت *** كأنها خرجت من ظلمة الرمس

و عاد مغربها شرقا بها فزهت *** و عاد مطلعها للعرش و الكرسي

ناجيته في شهود لا انقطاع له *** مؤيد بين حصر الجهر و الهمس

و هذه خمسة في العد حافظة *** و ليس يحفظ أكواني سوى الخمس

[الصلاة الوسطى ما هي]

قال اللّٰه سبحانه و تعالى ﴿حٰافِظُوا عَلَى الصَّلَوٰاتِ﴾ [البقرة:238] و ليست سوى هذه الخمس الموقتة المعينة المكتوبة و كما أن الخمسة تحفظ نفسها و غيرها الذي هو العشرون و هو ثاني عقد العشر من العشرة و العشرة أول العقود و أقل ما يكون العقد بين اثنين فكذلك الصلاة قسمها الحق نصفين نصفا له و نصفا لعبده و جعلها بين تحريم و تحليل فإذا شرع فيها العبد لم يصرف ذاته إلى غيرها من الأعمال بخلاف غيرها من الأعمال المشروعة فحفظت نفسها حتى تسمى صلاة فإن في الصلاة شغلا و حفظت غيرها و هو المصلي ليبقى عليه اسم المصلي و حكمه فلهذا شرعها اللّٰه خمسة فعين الوقت فإن قال قائل بالوتر إنه زائد على الخمسة فتكون ستا قلنا فما زاد إلا من يحفظ نفسها و هي الستة و هي أول عدد كامل فما زاد إلا بما يناسب في الحفظ فلذا قال السائل هل على غيرها يعني الخمس قال لا إلا أن تطوع و جمع له في الصلاة بين الجهر و السر أعني في القراءة و جمع له أيضا بين القول و الفعل و الحال و إلهيات في الحركات من قيام و ركوع و سجود و جلوس و أثنى على من أتى بهن لم يضيع من حقهن شيئا بالدوام عليها و الخشوع فيها و أعطاها الليل و النهار حتى يعم الزمان بركتها و قد بينا من أسرارها ما شاء اللّٰه في باب الصلاة من هذا الكتاب و كذلك بينا أيضا من شأنها في كتاب التنزلات الموصلية لنا ثم إن اللّٰه شرع طهارة لها مائية و ترابية فإن النشء الإنساني لم يكن إلا من تراب كآدم و ماء كبني آدم فقال ﴿خَلَقَكُمْ مِنْ تُرٰابٍ﴾ [الروم:20]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!