الفتوحات المكية

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فلا تلمني و لم من أنت تعرفه *** و أنت تدريه رب القيل و القال

[أن الجهل بالله إنما ينشأ من جهلك بك]

اعلم أيدنا اللّٰه و إياك بروح منه أن الجهل بالله إنما كان من جهلك بك فإن اللّٰه ما جعل دليلا على العلم به إلا علمك بك فجعل الآية في نفسك و «قال النبي ﷺ المترجم عنه من عرف نفسه عرف ربه» و ما أحسن ما قال تعالى ﴿يَسْتَخْفُونَ مِنَ النّٰاسِ﴾ [النساء:108] فإنهم مجبولون على النسيان ﴿وَ لاٰ يَسْتَخْفُونَ مِنَ اللّٰهِ﴾ [النساء:108] الذي لا يضل و لا ينسى : و كان الأولى لو صح عكس القضية إلا أنه لا يصح أن يستخفي شيء عن اللّٰه و السبب الموجب للاستخفاء عن الناس ما علموا منهم من الحب في ظهور التحكم فيهم بقدر الحال و الاستطاعة و بما فيهم من حب الثناء الحسن و طلب المحمدة فإذا اطلعوا على هذا الذي أشرنا إليه من العمل سقطت حرمة العامل من قلب الذي يراه و قام عليه لسان الذم منه و سبب ذلك الجنسية و مع كونه يعلم أن اللّٰه يحيط به علما لكن يرى هذا العامل أن الأسماء الإلهية تتحاور فيه في حال هذا العمل و لا سيما الاسم الحليم و الصبور و يعلم أن الاختفاء منه محال فلا بد من إتيان ما أتى به فإن كان مؤمنا أتاه على كره فأشبه قبض الحق بالموت نسمة المؤمن على كره فيجد في مثل هذا اتساعا يجول فيه حتى أنه ربما قال في سوية الحق في ذلك و لا يقول مثل هذا إلا غير أديب أ لا تراه يقول تعالى في تمام هذه الآية ﴿وَ كٰانَ اللّٰهُ بِمٰا يَعْمَلُونَ مُحِيطاً﴾ [النساء:108] ينبه أن هذا العمل الذي هو فيه قد أحطت علما به من نفسي من حيث كرهت أشياء لا بد من أني أوجدها و أحببت أشياء و إنما قال ذلك لإقامة عذر عبده المؤمن فإنه ما يكره فعل ما يستخفي منه و يستخفي بسببه إلا المؤمن بأن هذا لا يجوز عمله شرعا فالإحاطة من اللّٰه بالأشياء مثل الذوق فينا و هو أن تعلم الأشياء منك أي إنك قد اتصفت بها ذوقا و كثير بين من يكون ذلك المعلوم حاله و بين من لا يكون فإنه ما هو منه على علم صحيح و قوله من أنه مما ﴿لاٰ يَرْضىٰ مِنَ الْقَوْلِ﴾ [النساء:108] و هو الجهر بالسوء من القول فإن اللّٰه لا يحب



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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