الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

هو قول اللّٰه و اللفظ لنا *** و له الحكم العظيم الفيصل

و لكن اللّٰه قد أبان لنا أن هوية الحق سمع العبد و بصره و جميع قواه و العبد ما هو إلا بقواه فما هو إلا بالحق فظاهره صورة خلقية محدودة و باطنه هوية الحق غير محدودة للصورة فهو من حيث الصورة من جملة من يسبح بحمده و هو من حيث باطنه كما ذكرنا فالحق يسبح نفسه و أعطى المجموع معنى دقيقا غامضا لم يعطه كل واحد على الانفراد به و أضيف إلى الصورة ما أضيف من موافقة و مخالفة و طاعة و معصية و به قيل إنه مكلف و به صحت القسمة في الصلاة بينه و بين اللّٰه فيقول العبد كذا فيقول اللّٰه كذا و لا يكون عبدا إلا بالمجموع فانظر ما حصل للحق من النعت لما وصف نفسه بأنه قوى العبد فما كان عبدا إلا به كما لم يكن الحق قواه إلا به لأن اسم العبد ما انطلق إلا على المجموع و قد أعلمنا اللّٰه من هو المجموع فيقول العبد ﴿اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰالَمِينَ﴾ [الفاتحة:2] و الحق لسانه و الحق سمعه فمن قال الحمد لله و من سمع قوله الحمد لله فيقول اللّٰه أثنى على عبدي و لكن بغير هذا اللسان القائل بل بهوية الحق مجردة عن الإضافة بهذا العبد في حال إضافتها إليه فلم يقل بالمجموع اثني على عبدي و ما أثنى عليه إلا بكلامه فإن ﴿اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰالَمِينَ﴾ [الفاتحة:2] كلام اللّٰه فبالمعنى المعلوم كانت العبارة عنه أثنيت على نفسي بصورة عبدي حكى عبدي عني من حيث صورته الظاهرة ما أثنيت به على نفسي كما ذكر لنا في غير هذا الموضع إن اللّٰه قال على لسان عبده سمع اللّٰه لمن حمده و قال لنبيه ص ﴿فَأَجِرْهُ حَتّٰى﴾ [التوبة:6] ﴿يَسْمَعَ كَلاٰمَ اللّٰهِ﴾ [التوبة:6] و ما سمع إلا صوت المؤدي و هو الرسول و نحن نعلم أن كلام العالم كله ليس إلا كلامه فإن العالم كله إنسان كبير كامل فحكمه حكم الإنسان و هوية الحق باطن الإنسان و قواه التي كان بها عبدا فهوية الحق قوى العالم التي كان بها إنسانا كبيرا عبدا مسبحا ربه تعالى

ألا كل قول في الوجود كلامه *** سواء علينا نثره و نظامه

يعم به إسماع كل مكون *** فمنه إليه بدؤه و ختامه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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