الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 8824 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

من ذلك فكل يجزى بما مال إليه فيما أوحينا يقول ﴿اِتَّبِعْ مٰا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِنْ رَبِّكَ﴾ [الأنعام:106] و لا تمل بميلهم فإني خلقتك متبعا لا متبعا اسم مفعول لا اسم فاعل و لذلك قال له عند ذكر الأنبياء ﴿فَبِهُدٰاهُمُ اقْتَدِهْ﴾ [الأنعام:90] لا بهم و هداهم ليس سوى شرع اللّٰه فقال ﴿شَرَعَ لَكُمْ مِنَ الدِّينِ مٰا وَصّٰى بِهِ نُوحاً﴾ [الشورى:13] و ذكر من ذكر فكان الشارع لنا اللّٰه الذي شرع لهم فلو أخذ عنهم لكان تابعا فافهم فأقطاب هذه الأمة اثنا عشر قطبا عليهم مدار هذه الأمة كما إن مدار العالم الجسمي و الجسماني في الدنيا و الآخرة على اثني عشر برجا قد وكلهم اللّٰه بظهور ما يكون في الدارين من الكون و الفساد المعتاد و غير المعتاد و أما المفردون فكثيرون و الختمان منهم أي من المفردين فما هما قطبان و ليس في الأقطاب من هو على قلب محمد ﷺ و أما المفردون فمنهم من هو على قلب محمد ﷺ و الختم منهم أعني خاتم الأولياء الخاص فأما الأقطاب الاثنا عشر فهم على قلوب الأنبياء عليه السّلام فالواحد منهم على قلب و إن شئت قلت على قدم و هو أولى فإني هكذا رأيته في الكشف بإشبيلية و هو أعظم في الأدب مع الرسل و الأدب مقامنا و هو الذي أرتضيه لنفسي و لعباد اللّٰه فنقول إن الأول أعني واحدا منهم على قدم نوح عليه السّلام و الثاني على قدم إبراهيم الخليل عليه السّلام و الثالث على قدم موسى عليه السّلام و الرابع على قدم عيسى عليه السّلام و الخامس على قدم داود عليه السّلام و السادس على قدم سليمان عليه السّلام و السابع على قدم أيوب عليه السّلام و الثامن على قدم الياس عليه السّلام و التاسع على قدم لوط عليه السّلام و العاشر على قدم هود عليه السّلام و الحادي عشر على قدم صالح عليه السّلام و الثاني عشر على قدم شعيب عليه السّلام و رأيت جميع الرسل و الأنبياء كلهم مشاهدة عين و كلمت منهم هودا أخا عاد دون الجماعة و رأيت المؤمنين كلهم مشاهدة عين أيضا من كان منهم و من يكون إلى يوم القيامة أظهرهم الحق لي في صعيد واحد في زمانين مختلفين و صاحبت من الرسل و انتفعت به سوى محمد ﷺ جماعة منهم إبراهيم الخليل قرأت عليه القرآن و عيسى تبت على يديه و موسى أعطاني علم الكشف و الإيضاح و علم تقليب الليل و النهار فلما حصل عندي زال الليل و بقي النهار في اليوم كله فلم تغرب لي شمس و لا طلعت فكان لي هذا الكشف أعلاما من اللّٰه أنه لا حظ لي في الشقاء في الآخرة و هود عليه السّلام سألته عن مسألة فعرفني بها فوقعت في الوجود كما عرفني بها هذا إلى زماني هؤلاء و عاشرت من الرسل محمدا ﷺ و إبراهيم و موسى و عيسى و هودا و داود و ما بقي فرؤية لا صحبة

[أن لكل قطب من هؤلاء الأقطاب لبث في العالم]

و اعلم أن كل قطب من هؤلاء الأقطاب له لبث في العالم أعني دعوتهم فيمن بعث إليهم آجال مخصوصة مسماة تنتهي إليها ثم تنسخ بدعوة أخرى كما تنسخ الشرائع بالشرائع و أعني بدعوتهم ما لهم من الحكم و التأثير في العالم فلنذكر مدد أعمارهم في حياتهم الدنيا فمنهم من كان عمره في ولايته ثلاثة و ثلاثين سنة و أربعة أشهر و منهم من كانت مدته ثلاثين سنة و ثلاثة أشهر و عشرين يوما و منهم من دامت مدته ثمانيا و عشرين سنة و ثلاثة أشهر و عشرة أيام و منهم من دامت مدته خمسا و عشرين سنة و منهم من دامت مدته اثنتين و عشرين سنة واحد عشر شهرا و عشرين يوما و منهم من دامت مدته تسع عشرة سنة و خمسة أشهر و عشرة أيام و منهم من دامت مدته ستة عشر سنة و ثمانية أشهر و منهم من دامت مدته ثلاث عشرة سنة و عشرة أشهر و عشرين يوما و منهم من دامت مدته إحدى عشرة سنة و ثلاثة أشهر و عشرة أيام و منهم من دامت مدته سنتين و تسعة أشهر و عشرة أيام و منهم من دامت مدته ثمان سنين و أربعة أشهر و منهم من دامت مدته خمس سنين و ستة أشهر و عشرين يوما و هجيرهم واحد و هو اللّٰه اللّٰه بسكون الهاء و تحقيق الهمزة ما لهم هجير سواه و ما عدا هؤلاء الأقطاب من أقطاب القرى و الجهات و الأقاليم و شيوخ الجماعات فأنواع كثيرة و هي التي أذكر منها في هذا الفصل ما تيسر و ما أذكر ذلك إلا لأجل نتيجة ذلك الذكر لمن دام عليه على الحال المعروفة في الذكر في ﴿اَلذّٰاكِرِينَ اللّٰهَ كَثِيراً وَ الذّٰاكِرٰاتِ﴾ [الأحزاب:35]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!