الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«ذكر مسلم في صدر كتابه عن شخص أنه رأى رسول اللّٰه ﷺ في المنام فعرض عليه ألف حديث كان في حفظه فأثبت له ﷺ من الألف ستة أحاديث و أنكر ﷺ ما بقي» فمن رآه ﷺ في المنام فقد رآه في اليقظة ما لم تتغير عليه الصورة فإن الشيطان لا يتمثل على صورته أصلا فهو معصوم الصورة حيا و ميتا فمن رآه فقد رآه في أي صورة رآه فالمبشرات من التوقيعات الإلهية و ثم توقيعات أخر إلهية من الأسماء الإلهية تعرف إذا وردت على قلوب العارفين بالله في كشفهم و هو أن يكون التوقيع الذي يجيء إلى هذا الولي من اسم خاص إلهي من الأسماء الحسنى مما دون الاسم اللّٰه فإنه ما يخرج منه في توقيع أصلا من حيث دلالته و إنما يخرج منه إذا ذكر مقيدا بحال يستدعي اسما خاصا بذلك الحال كني عن ذلك الاسم بالاسم اللّٰه لتضمنه خاصة و أكثر ما تخرج التوقيعات لأولياء اللّٰه من اللّٰه و الرحمن و الرب و الملك لا غير هذا هو الغالب المستمر فإن خرج باسم غير ما ذكرنا فهو شاذ يحكم به على حد ما تعطيه حقيقة ذلك الاسم و هو دليل على مضمون ذلك التوقيع لهذا الولي فيتصرف فيه به بحسب ما يقتضيه و يحتاج هذا الولي إلى علم عظيم بالمواطن و صور الأحوال و مراتب العالم و علم المحو و الإثبات و الشئون الإلهية كل ذلك لا بد أن يعرفه العلماء بالله و إن لم يعرفوا ذلك و أمثاله فلا يتعدى قدره و ليدخل في عمار الناس و يلزم الجماعة فإن يد اللّٰه معهم و من شذ من الجماعة على غير بصيرة فقد شذ إلى النار بل صاحب البصيرة من المحال أن يشذ عن الجماعة فإنه لا يشذ عن يد اللّٰه و لكن يعلم و هو في الجماعة و معها ما لا يعلمه واحد و أحد من الجماعة إلا من كان مثله فهو مع من هو مثله جماعة ما هو ممن صلى وحده فالسعيد من وقف عند حدود اللّٰه و لم يتجاوزها و أنا و اللّٰه ما تجاوزنا منها حدا و لكن أعطانا اللّٰه من الفهم عنه تعالى فيها ما لم يعطه كثيرا من خلقه فدعونا إلى اللّٰه على بصيرة من أمره إذ كنا على بينة من ربنا ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]

«الباب الموفي عشرين و أربعمائة في معرفة منازلة

«التخلص من المقامات»



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