الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

على قلب محمد ﷺ منجما في ثلاث و عشرين سنة أو في عشرين سنة على الخلاف و فيه علم تسمية الترجمة انزالا و تنزيلا و فيه علم من كشف عنه الغطاء حتى شاهد الأمر على ما هو عليه هل هو مخاطب بالآداب السمعية أو يقتضي ذلك المقام الذهول و ذهاب عقل التكليف فيبقى بلا رسم مع المهيمن من الملائكة و فيه علم الوصايا و الآداب و أحوال المخاطبين و المطرفين و فيه علم حفظ الجوار على الجار و هل الجار إذا انتهك حرمة جاره هل يجازيه جاره بمثل ما أتى به أو يكون مخاطبا بحفظ الجوار و لا يحازيه بالإساءة على إساءته و فيه علم حال الموصوف بأنه يأمر بمكارم الأخلاق و منها العفو و الصفح و تفريج الكرب بضمان التبعات لما هو عليه من الغني في الأداء عنه ثم بعد ذلك يعاقب و العفو مندوب إليه و الضمان أيضا مندوب إليه فبأي صفة تكون العقوبة ممن هذا نعته و فيه علم الفرق بين الأمر و صفته و فيه علم ما حرم من الزينة و ما أبيح منها و ما حظر منها و موطن كل زينة و فيه علم الفرق بين الخبيث و الطيب و فيه علم مرجع الدرك في الدار الآخرة على من يكون إذا كان في ضمنه شخصان الواحد مفلس و الآخر موسر و فيه علم الثناء و تفاصيله بالأحوال و فيه علم مخاطبة الموتى بعضهم بعضا في حال موتهم و هل حالهم بعد الموت مثل حالهم قبل الإيجاد أم لا و فيه علم الموت و ماهيته و فيه علم الفصل بين القبضتين و فيه علم التكليف يوم القيامة و قبل دخول الجنة و فيه علم العلامات في السعداء و الأشقياء و من لا علامة له لأي فريق يكون و فيه علم من حلف على شيء أكذبه اللّٰه و قد ورد من يتألى على اللّٰه يكذبه و فيه علم ما السبب الموجب للمنعوت بالكرم إذا سأله المضطر المحروم و هو قادر على مواساته و بذله ما سأله بذله فلم يفعل و بما ذا يعتذر و ما صفة هذا السائل المرحوم و فيه علم أولاد الليل و النهار بما ذا يفرق بينهم و فيه علم سباحة عالم الأنوار و فيه علم قيام العبد بالصفتين المتضادتين و هو محمود عند اللّٰه عزَّ وجلَّ في الحالين و فيه علم كون الرحمة قد ﴿وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ﴾ [الأعراف:156]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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