الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فما لك لم تسجد و أنت إمامنا *** فأنت جدير بالسجود كما ذكر

أتيناك نسعى فانثنيت مهر و لا *** و أين خطي الاقدام من خطوة البصر

و منها أيضا

فمن فصلنا أو بمن قد وصلتنا *** و ما هو إلا اللّٰه بالعين و الأثر

فشكرا لما أخفى و شكرا لما بدا *** و حاز مزيد الخير عبد إذا شكر

و ما هو إلا الحق يشكر نفسه *** و لكن حجاب القرب أرسل فاستتر

فالعالم كله جماله ذاتي و حسنه عين نفسه إذ صنعه صانعه عليه و لهذا هام فيه العارفون و تحقق بمحبته المتحققون و لهذا قلنا فيه في بعض عباراتنا عنه إنه مرآة الحق فما رأى العارفون فيه إلا صورة الحق و هو سبحانه الجميل و الجمال محبوب لذاته و الهيبة له في قلوب الناظرين إليه ذاتية فأورث المحبة و الهيبة فإن اللّٰه ما كثر لنا الآيات في العالم و في أنفسنا إذ نحن من العالم إلا لنصرف نظرنا إليه ذكرا و فكرا و عقلا و إيمانا و علما و سمعا و بصرا و نهيا و لبا و ما خلقنا إلا لنعبده و نعرفه و ما أحالنا في ذلك على شيء إلا على النظر في العالم لجعله عين الآيات و الدلالات على العلم به مشاهدة و عقلا فإن نظرنا فإليه و إن سمعنا فمنه و إن عقلنا فعنه و إن فكرنا ففيه و إن علمنا فإياه و إن آمنا فبه فهو المتجلي في كل وجه و المطلوب من كل آية و المنظور إليه بكل عين و المعبود في كل معبود و المقصود في الغيب و الشهود لا يفقده أحد من خلقه بفطرته و جبلته فجميع العالم له مصل و إليه ساجد و بحمده مسبح فالألسنة به ناطقة و القلوب به هائمة عاشقة و الألباب فيه حائرة يروم العارفون أن يفصلوه من العالم فلا يقدرون و يرومون أن يجعلوه عين العالم فلا يتحقق لهم ذلك فهم يعجزون فتكل أفهامهم و تتحير عقولهم و تتناقض عنه في التعبير ألسنتهم فيقولون في وقت هو و في وقت ما هو و في وقت هو ما هو فلا تستقر لهم فيه قدم و لا يتضح لهم إليه طريق أمم لأنهم يشهدونه عين الآية و الطريق فتحول هذه المشاهدة بينهم و بين طلب غاية الطريق إذ لا تسلك الطريق إلا إلى غاياتها و المقصود معهم و هو الرفيق فلا سالك و لا مسلوك فتذهب الإشارات و ليست سواه و تطيح العبارات و ما هي إلا إياه فلا ينكر على العارف ما يهيم فيه من العالم و ما يتوهمه من المعالم و لو لا إن هذا الأمر كما ذكرناه ما أحب نبي و لا رسول أهلا و لا ولدا و لا آثر على أحد أحدا و ذلك لتفاضل الآيات و تقلب العالم هو عين الآيات و ليست غير شئون الحق التي هو فيها و قد رفع بعضها ﴿فَوْقَ بَعْضٍ دَرَجٰاتٍ﴾ [الأنعام:165]



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