الفتوحات المكية

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﴿لِمَنْ كٰانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَ هُوَ شَهِيدٌ﴾ [ق:37] مرجع الدرك و لما خلق اللّٰه الأشياء و ذكر أن ﴿لَهُ الْخَلْقُ وَ الْأَمْرُ تَبٰارَكَ اللّٰهُ رَبُّ الْعٰالَمِينَ﴾ [الأعراف:54] وضع الأسباب و جعلها له كالحجاب فهي توصل إليه تعالى كل من علمها حجابا و هي تصد عنه كل من اتخذها أربابا فذكرت الأسباب في إنبائها إن اللّٰه من ورائها و إنها غير متصلة بخالقها فإن الصنعة لا تعلم صانعها و لا منفصلة عن رازقها فإنها عنه تأخذ مضارها و منافعها فخلق الأرواح و الأملاك و رفع السموات قبة فوق قبة على عمد الإنسان و أدار الأفلاك و دحا الأرض ليميز بين الرفع و الخفض و عين الدنيا طريقا للآخرة و أرسل بذلك رسله تترى لما خلق في العقول من العجز و القصور عن معرفة ما خلق اللّٰه من أجرام العالم و أرواحه و لطائفه و كثائفه فإن الوضع و الترتيب ليس العلم به من حظ الفكر بل هو موقوف على خبر الفاعل لها و المنشئ لصورها و متعلق علم العقل من طريق الفكر إمكان ذلك خاصة لا ترتيبه فإن الترتيب لا يعرف إلا بالشهود في الأشخاص حتى يقول هذا فوق هذا و هذا تحت هذا و هذا قبل هذا و هذا بعد هذا و العقل يحكم بالإمكان في ذلك كله ثم إن اللّٰه تعالى قدر في العالم العلوي المقادير و الأوزان و الحركات و السكون في الحال و المحل و المكان و المتمكن فخلق السموات و جعلها كالقباب على الأرض قبة فوق قبة على الأرض كما سنوقفك في هذا الباب على شكل وضع عالم الأجرام و جعل هذه السموات ساكنة و خلق فيها نجوما جعل لها في سيرها و سباحتها في هذه السموات حركات مقدرة لا تزيد و لا تنقص و جعلها عاقلة سامعة مطيعة ﴿وَ أَوْحىٰ فِي كُلِّ سَمٰاءٍ أَمْرَهٰا﴾ [فصلت:12] ثم إن اللّٰه لما جعل السباحة للنجوم في هذه السموات حدثت لسيرها طرق لكل كوكب طريق و هو قوله ﴿وَ السَّمٰاءِ ذٰاتِ الْحُبُكِ﴾ [الذاريات:7] فسميت تلك الطرق أفلاكا فالأفلاك تحدث بحدوث سير الكواكب و هي سريعة السير في جرم السماء الذي هو مساحتها فتخترق الهواء المماس لها فيحدث لسيرها أصوات و نغمات مطربة لكون سيرها على وزن معلوم فتلك نغمات الأفلاك الحادثة من قطع الكواكب المسافات السماوية فهي تجري في هذه الطرق بعادة مستمرة قد علم بالرصد مقادير تلك الحركات و دخول بعضها على بعض في السير و جعل سيرها للناظر بين بطء و سرعة و جعل لها تقدما و تأخرا في أماكن معلومة من السماء تعين تلك الأماكن أجرام الكواكب فإن أجرام السموات متماثلة الأجزاء فلو لا إضاءة الكواكب ما عرف تقدمها و لا تأخرها و هي التي يدركها البصر و يدرك سيرها و رجوعها فجعل أصحاب علم الهيئة للأفلاك ترتيبا جائزا ممكنا في حكم العقل أعطاهم علم ذلك رصد الكواكب و سيرها و تقدمها و تأخرها و بطئها و سرعتها و أضافوا ذلك إلى الأفلاك الدائرة بها و جعلوا الكواكب في السموات كالشامات على سطح جسم الإنسان أو كالبرص لبياضها و كل ما قالوه يعطي ميزان حركاتها و إن اللّٰه تعالى لو فعل ذلك كما ذكروه لكان السير السير بعينه و لذلك يصيبون في علم الكسوفات و دخول الأفلاك بعضها على بعض و كذلك الطرق يدخل بعضها على بعض في المحل الذي يحدث فيه سير السالكين فهم مصيبون في الأوزان مخطئون في إن الأمر كما رتبوه و أن السموات كالأكر و أن الأرض في جوف هذه الأكر و جعل اللّٰه لهذه الكواكب و لبعضها وقوفا معلوما مقدرا في أزمان مخصوصة لم يخرج اللّٰه العادة فيها ليعلم صاحب الرصد بعض ما أوحى اللّٰه من أمره في السماء و ذلك كله ترتيب وضعي يجوز في الإمكان خلافه مع هذه الأوزان و ليس الأمر في ذلك إلا على ما ذكرناه شهودا و كشفا ثم إن اللّٰه تعالى يحدث عند هذه الحركات الكوكبية في هذه الطرق السماوية في عالم الأركان و في المولدات أمورا مما أوحى في أمر السماء و جعل ذلك عادة مستمرة ابتلاء من اللّٰه ابتلى بها عباده فمن الناس من جعل ذلك الأثر عند هذا السير لله تعالى و من الناس من جعل ذلك لحركة الكوكب و شعاعه لما رأى أن عالم الأركان مطارح شعاعات الكواكب ﴿فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا﴾ [البقرة:26]



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