الفتوحات المكية

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على اثني عشر قسما و أوحى اللّٰه تعالى في سماء البروج أمرها فلكل برج فيها أمر يتميز به عن غيره من البروج و جعل اللّٰه لهذه البروج أثرا من أمر اللّٰه الموحى به فيها فيما دون هذه السماء من عالم التركيب و الإنسان من حيث جسمه و طبيعته من عالم التركيب و هو زبدة مخض الطبيعة التي ظهرت بتحريك الأفلاك فهو المخضة التي ليس في اللبن ألطف منها بل هي روح اللبن إذا خرج منه بقي العالم مثل النخالة فهو فيه لا فيه فإنه متميز عنه بالقوة و هو منه فإن الإنسان ما خرج من العالم و إن كان زبد مخضة العالم إذ لو انفصل عنه ما بقي العالم يساوي شيئا مثل اللبن إذا خرج عنه الزبد استحال و قل ثمنه و زال خيره الذي كان المطلوب منه و من أجل تلك الزبدة كان يستعمل اللبن و يعظم قدره فلما قضى اللّٰه أن يكون لهذه البروج أثر في العالم الذي تحت حيطة سماء هذه البروج جعل اللّٰه في نشأة هذا الإنسان اثني عشر قابلا يقبل بها هذه الآثار فيظهر الإنسان الكامل بها و ليس ذلك للإنسان الحيوان و إن كان أتم في قبول هذه الآثار من سائر الحيوان و لكنه ناقص بالنظر إلى قبول الإنسان الكامل فمن الاثني عشر لصوقها بالعالم حين حذيت عليه و لصوقها بحضرة الأسماء الإلهية و به صح الكمال لهذه النفس و هذه المجاورة على ثلاث مراتب منها مرتبة الاختصاص و هي في الإنسان الحيوان بما هو محصل لحقائق العالم و هي في الكامل كذلك و بما اختص به من الأسماء الإلهية حين انطلقت عليه بحكم المطابقة للحذو الإلهي الاعتنائي و لكونه ظلا و لا شيء ألصق من الظل بمن هو عنه و المرتبة الثانية من المجاورة مرتبة الشيئية الرابطة بين الأمرين و هي الأدوات التي بها يظهر عن الإنسان ما يتكون عنه فيشترك الإنسان الحيوان مع الكامل في الأدوات الصناعية التي بها يتوصل إلى مصنوع ما مما يفعل بالأيدي و يزيد الكامل عليه بالفعل بالهمة فادواته همته و هي له بمنزلة الإرادة الإلهية إذا توجهت على إيجاد شيء فمن المحال أن لا يكون ذلك الشيء المراد و المرتبة الثالثة الاتصال بالحق فيفني عن نفسه بهذا الاتصال فيظهر الحق حتى يكون سمعه و بصره و هذا المسمى علم الذوق فإنه لا يكون الحق شيئا من هذه الأدوات حتى تحترق بوجوده فيكون هو لا هي و قد ذقنا ذلك و وجدت الحرق حسا في ذكري لله بالله فكان هو و لم أكن أنا فأحسست بالحرق في لساني و تألمت لذلك الحرق تألما حسيا حيوانيا لحرق حسي قام بالعضو فكنت ذاكرا اللّٰه بالله في تلك الحالة ست ساعات أو نحوها ثم أنبت اللّٰه لي لساني فذكرته بالحضور معه لا به و هكذا جميع القوي لا يكون الحق شيئا منها حتى يحرق تلك القوة وجوده فيكون هو أي قوة كانت و هو «قوله كنت سمعه و بصره و لسانه و يده» و من لم يشاهد الحرق في قواه و يحسه و إلا فلا ذوق له و إنما ذلك توهم منه و هذا معنى قوله في الحجب الإلهية لو كشفها لأحرقت سبحات وجهه فأي قوة أراد الحق إحراقها من عبده حتى يحصل له العلم بالأمر من طريق الذوق برفع الحجاب الذي بين الإنسان من حيث تلك القوة و بين الحق فتحترق بنور الوجه فيسد بنفسه خلل تلك القوة فإن كان سمعه كان الحق سمعه في هذه الحالة و إن كان بصره فكذلك و إن كان لسانه فكذلك و لنا في هذا المعنى



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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