الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و أما النور الذي لا يدرك و هو قوله ﷺ نوراني أراه فإن ذلك لاندراج نور الإدراك فيه فلم يدركه لأنه ليس هو عنه بأجنبي فهو كالجزء عاد إلى كله إذ لا يصح اسم الكل عليه ما لم يحو على أجزائه فاندرج الجزء في الكل و ليس الكل غير أجزائه فالكل يدرك أجزاءه جزءا جزءا و الجزء لا يدرك الكل و لهذا يعلم الحق الجزئيات و لا تعلمه الجزئيات و إذا علم الجزء الكل فما يعلم منه إلا عين جزئيته فإنه علم كل في نفسه لنفسه و قد لا يعلم أنه جزء لكل و لهذا تتفاضل الناس في العلم فالعالم بالشيء من لم يبق له في ذلك المعلوم وجه إلا علمه منه و إلا فقد علم منه ما علم و أما النور الذي يدرك و يدرك به غيره فهو نور مكافئ لنور الإدراك فيصحبه و لا يندرج فيه فيدركه و يدرك به ما كشفه له و ما انكشف له ما انكشف إلا بالنورين نور الإدراك و نور المدرك و لو لا وجود نور الإدراك لما ظهرت الأشياء فلا يظهر شيء بنور المدرك من غير نور الإدراك و قد يظهر بعض الأشياء لنور الإدراك و لكن بنور المدرك و إن لم يدركه به كما قلنا في نسبة كل معلوم إلى النور الذي لولاه ما علم فالبصر يدرك به كما قلنا في نسبة كل معلوم إلى النور الذي لولاها ما علم فالبصر يدرك الظلمة نفسها و لا يدرك بها غيرها إذا كان الإدراك بالبصر خاصة

«وصل»و أما الظلم المعنوية

كظلمة الجهل فإنها مدركة للعالم ما لم تقم بالجاهل فإذا قامت به لم يدركها إذ لو أدركها كان عالما و ما عدا ظلمة الجهل من الظلم فإنها تدرك كلها ثم لتعلم أنه إن كان الجهل نفي العلم عن المحل بأمر ما فكل ما سوى اللّٰه جاهل أي ظلمة الجهل له لازمة لأنه ليس له علم بإحاطة المعلومات و لذلك أمر اللّٰه رسوله ﷺ بطلب الزيادة من العلم فقال له



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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