الفتوحات المكية

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فسبب عصمته من وجود المعصية خوفه و لو لم يكن الخوف لمنعه الحياء من اللّٰه تعالى أن يجري عليه لسان ما يسمى ذنبا في حق من كان و لو لم يكن ذنبا في حقه لكونه ما أقيم إلا فيما أبيح له و هذه غاية العناية و العصمة من التصرف في المباح و أعظم المعاصي ما يميت القلوب و لا تموت إلا بعدم العلم بالله و هو المسمى بالجهل لأن القلب هو البيت الذي اصطفاه اللّٰه من هذه النشأة الإنسانية لنفسه فغصبه فيه هذا الغاصب و حال بينه و بين مالكه فكان أظلم الناس لنفسه لأنه حرمها الخير الذي يعود عليها من صاحب هذا البيت لو تركه له فهذا حرمان الجهل غير إن هنا نكتة ينبغي التنبيه عليها و ذلك أن صاحب القلب الذي يرى أنه وسع القلب ربه دون سائر نشأته ينزل عن درجة من يرى أن الحق عين نشأته من غير تخصيص إذ كان الحق سمعه و بصره و جميع قواه فما اختص منه بشيء دون شيء فصاحب القلب مراقب قلبه و صاحب الحالة الأخرى يحكم بربه على كل شيء استتر فيه ربه عن ذلك الشيء و هو مشهود لصاحب هذه الصفة في ذلك الستر فيعامله بما يوحى إليه به فإن أوحي إليه بالكشف عنه اعتناء من الحق بهذا المستور عنه كشفه له و أعرب له عن نفسه و عرفه ما هو الحق منه و إن أوحي إليه بإبقاء الستر عليه أبقاه و لم يظهر له شيئا مما هو في نفسه عليه هذا المستور فيحكم صاحب هذه الصفة على صاحب القلب و لا يحكم عليه صاحب القلب لشغله بحراسة قلبه الذي هو بيت ربه لئلا يدخل فيه غير ربه فإنه الحفيظ البواب فإذا فهمت هذا فانظر أي الرجلين تكون و لهذا أهل المراقبة لا يزالون في الحجاب عن التصرف في الكون و هم أهل الحدود في اللّٰه فإذا ارتفعوا عن مراقبة قلوبهم فهو أعظم الحجب و إذا تعدوا في مراقبة قلوبهم مراقبة العالم بأسره اتسع عليهم المجال و لكن ما لهم حكم صاحب ذلك الوصف الذي ذكرنا فإنهم مراقبون إياه لكونه مراقبا إياهم لأنه على كل شيء رقيب فقابلوا الحفظ بالحفظ مقابلة الأمثال بالموازنة و المطابقة فكما راقبهم بعينه راقبه هذا المراقب بعينه أيضا و من كان حقا كله في نفسه و في العالم خرج عن صفة المراقبة فإنها مقام سلوك و محجة فإذا سلكت فيه به و منه إليه لم يكن ثم من يراقب إذ لا خوف في ذلك الطريق من مانع يمنع السالك فيه فهو سلوك لا مراقبة فيه و يتضمن هذا المنزل من العلوم علم إسبال الستور و على من تسبل فقد يسبل الستر على جهة التعظيم كالحجاب و الستر الذي وراءه الملك أو المخدرة و يسبل الستر أيضا دون من لا يرتضي للكشف لما وراء الستر و قد تسبل الأستار رحمة بمن تسبل دونهم كالحجب الإلهية بين العالم و بين اللّٰه إبقاء عليهم لئلا تحرقهم السبحات الوجهية فيتضمن علم لما ذا تسدل و على من تسدل و فيه علم صور تركيب الكلام الإلهي مع أحديته من أين قبل التركيب و ما هو إلا واحد العين ليفرق الإنسان العالم بين حقيقة الكلام و بين ما يتكلم به من له صفة الكلام فيعلم إن التركيب فيما يتكلم به لا في الكلام و علم هذا النوع من المعلومات علم عزيز لا يختص به إلا العلماء بالله الذين سمعوا كلام اللّٰه في أعيان الممكنات و فيه علم القابل و المقبول منه و القبول الذي هو نعت القابل و هل يتنوع القبول لتنوع القابل أو لا أثر للقابل فيه و فيه علم الحدود الإلهية لما ذا ترجع هل إليها في ذاتها أو إلى اللّٰه أو إلى الممكنات التي هي العالم و فيه علم صفات المنازعين الذين يعلمون الحق فيسترونه مثل الفقهاء الذين يلتزمون مذهبا لا يعتقدون صحته فيناظرون عليه مع علمهم ببطلانه و الخصم الذي يكون في مقابلته يأتي بالحق على بطلانه و يعلم هذا الآخر أن الحق بيد صاحبه فيرده و يظهر الباطل في صورة الحق على علم منه فهل يستوي هو و من يظن في الباطل أنه حق فيذب عنه لكونه عنده إنه حق و ما حكم هؤلاء عند اللّٰه يوم القيامة و هل لهم مستند إلهي أم لا و فيه علم الفرق بين الإنكار و الجحد و الكذب و هل هذا كله أمر عدمي أو وجودي فإن كان وجوديا ففي أي مرتبة هو من مراتب الوجود هل يعمها كلها أو هو في بعضها و كذلك إن كان عدميا في أي مرتبة هو من مراتب العدم هل هو في مرتبة العدم الذي لا يقبل الوجود و هل ثم للعدم مرتبة لا يقبل الوجود بنسبة ما أومأ ثم عدم إلا و يقبل نسبة إلى مرتبة وجودية أو هو في مرتبة العدم الذي يقبل المنعوت به الوجود و هو العدم الممكن و فيه علم هم الأضعف بالأقوى بالسوء هل هو عن قوة حقيقية فما هو أضعف أو هل هو عن قوة متوهمة فهو في نفس الأمر أضعف و لا يعلم فما الذي يحجبه عن ضعفه و فيه علم من جهل قدر الأمور و ما تستحقه ما السبب الذي جعله يجهل ذلك حتى ظهر منه ما لا ينبغي فيما لا ينبغي و فيه علم مراتب الملائكة فيما يذكرون العالم به عند اللّٰه إذ لهم القرب الإلهي و هم الوسائط بين اللّٰه و بين خلقه و هم في الوسط في شهادة التوحيد في قوله



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