الفتوحات المكية

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﴿وَ إِلٰهُ مُوسىٰ﴾ [ طه:88] فإن التجلي الإلهي لا يكون إلا للاله و للرب لا يكون لله أبدا ﴿فَإِنَّ اللّٰهَ هُوَ الْغَنِيُّ﴾ [الحديد:24] ﴿قُلْ هُوَ اللّٰهُ أَحَدٌ اَللّٰهُ الصَّمَدُ لَمْ يَلِدْ وَ لَمْ يُولَدْ وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُواً أَحَدٌ﴾ و هو سبحانه لا يتجلى لشخص في صورة واحدة مرتين و لا لشخصين في صورة واحدة فلهذا قال ﴿وَ إِلٰهُ مُوسىٰ﴾ [ طه:88] فإن تجليه للأنبياء مختلف الصور أحدي الحكم بأنه الإله في أي صورة تجلى أ لا تراه في القيامة إذا تجلى ينكر و يعرف باختلاف الصور فإن قلت فقد رجع إلى الصورة حين أنكر حتى يعرف فقلنا لو علمت قوله هل بينكم و بينه علامة فتلك العلامة هي الدليل لهم حيثما رأوها عليه علموا أنه ربهم فسميت صورة تلك العلامة إذ كل معلوم ينطلق عليه اسم الصورة فبالعلامة عرفوه لا أنه كرر عليهم الصورة و إنما كانت تلك الصورة هي العلامة فدرجات الحق ليست لها نهاية لأن التجلي فيها و ليس له نهاية فإن بقاء العالم ليس له نهاية فالدرجات ليست لها نهاية في الطرفين أعني الأزل و الأبد اللذين ظهرا بالحال و هو العالم فلو زال العالم لم يتميز أزل من أبد كما هو الأمر عليه في نفسه فما ثم بدء في حق الحق و نفي البدء في حقه درجة من درجاته التي ارتفع بها عن مناسبة العالم و درجات العالم التي هي عين درجاته لا يتناهى أبدها و إن كان نزول العالم في درجة منها فتلك الدرجة هي بدء للعالم لأن الدرجات لها ابتداء بل ظهور العالم فيها له ابتداء و اعلم أن الحق من حيثما تميز عن الخلق كان برزخا بين الدرجات و بين الدركات فإنه وصف نفسه بأن له يدين و ما بين اليدين برزخ فما كان على اليمين هو درجات الجنة لأهلها و ما كان على اليد الأخرى دركات النار لأهلها فنسبة السفل إليه نسبة العلو لأنه مع العباد أينما كانوا فهو معهم في درجاتهم و هو معهم في دركاتهم كما يليق بجلاله و اعلم أنه من الدرجات درجة المغفرة و هما درجتان الواحدة ستر المذنبين عن إن تصيبهم عقوبة ذنوبهم و الدرجة الأخرى سترهم عن إن تصيبهم الذنوب و هذا الستر هو ستر العصمة فقال في الستر الواحد من المغفرة



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