الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فنحن و ما عندنا باق فتبين لك أن عندية كل شيء نفسه و العندية في اللسان ظرف مكان أو ظرف محلي كالجسم للعرض اللوني الذي يدركه البصر فهو أجلي فيما ترومه من الدلالة فهو بحيث محله و صاحب المكان ما هو بحيث المكان و العندية جامعة للأمرين و لما لم يمكن في التقليد الضروري أن يجحد أحد من استند إليه في وجوده لذلك أقر به من من شأنه الإنكار و الجحود فإن قلت فالمعطلة أنكرت قلنا المعطلة ما أنكرت مستندا و إنما أنكرت و عطلت الذي عينتموه أنتم إنه المستند ما عطلت المستند فقلتم أنتم هو كذا فعطلته المعطلة و قالت بل المستند كذا فكما إن أولئك معطلة أنتم أيضا معطلة تعطيلهم لكن اختص أولئك باسم المعطلة و هم على ضروب في التعطيل محل العلم بذلك و أمثاله العلم بالنحل و الملل و هو علم لا ينبغي للمؤمن أن يقرأه و لا ينظر فيه جملة كما يتعين على أهل اللّٰه أن يعرفوا علم كل نحلة و ملة بالله ليشهدوه في كل صورة فلا يقومون في موطن إنكار لأنه تعالى سار في الوجود فما أنكره إلا محدود و أهل اللّٰه تابعون لمن هم له أهل فيجري عليهم حكمه و حكمه تعالى عدم التقييد فله عموم الوجود فلأهله عموم الشهود فمن قيد وجوده قيد شهوده و ليس هو من أهل اللّٰه

[أن اللّٰه وصف نفسه بالاستواء و بالنزول إلى السماء]

و اعلم أن اللّٰه لما مهد هذه الخليقة جعلها أرضا له فوصف نفسه بالاستواء و بالنزول إلى السماء و بالتصرف في كل وجهة الكون موليها ﴿فَأَيْنَمٰا تُوَلُّوا فَثَمَّ وَجْهُ اللّٰهِ﴾ [البقرة:115] ﴿فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرٰامِ﴾ [البقرة:144] فإنه لا يرفع حكم إن وجه اللّٰه حيثما توليت و لكن اللّٰه اختار لك ما لك في التوجه إليه سعادتك و لكن في حال مخصوص و هي الصلاة و سائر الأينيات ما جعل اللّٰه لك فيها هذا التقييد فجمع لك بين التقييد و الإطلاق كما جمع لنفسه بين التنزيه و التشبيه فقال



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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