الفتوحات المكية

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و هو حجة عليهم إن لو كان الأمر على ظاهره فإن الاختبار سبب في تحصيل العلم ما هو نفس العلم و بالخبرة سمي خبيرا فإذا حصل العلم سمي عالما في ذلك الحال و غاية من نزه مثل ابن الخطيب و غيره في قوله ﴿حَتّٰى نَعْلَمَ﴾ [محمد:31] تعلق العلم بهذه الحالة و تعلق العلم محدث و لا يؤدي إلى حدوث العلم فبقي العلم على حاله من الوصف بالقدم و إن حدث التعلق فهذا منتهى غايتهم في التنزيه و يقولون لو تعلق العلم بما من شأنه إنه سيكون كائنا أو قد كان فقد علم الشيء على خلاف ما هو به و كذلك لو علم ما هو كائن قد كان أو سيكون أو علم ما كان هو كائن أو سيكون لكان هذا كله جهلا و اللّٰه يتعالى عن ذلك فأدخلوا على اللّٰه الزمان من حيث لا يشعرون و التقدم في الأشياء و التأخر و ما علموا إن اللّٰه تعالى يشهد الأشياء و يعلمها على ما هي عليه في أنفسها و الأزمنة التي لها من جملة معلوماته مستلزمة لها و أحوالها و أمكنتها إن كانت لها و محالها إن كانت ممن يطلب المحال و أحيازها كل ذلك مشهود للحق في غير زمان لا يتصف بالتقدم و لا بالتأخر و لا بالآن الذي هو حد الزمانين و لهذا لم يرد مع «قوله صلى اللّٰه عليه و سلم عن ربه كان اللّٰه و لا شيء معه» و أتى بكان و هي حرف وجودي لا بفعل و لم يقل و هو الآن فإن الآن نص في وجود الزمان فلو جعله ظرفا لهوية الباري تعالى لدخل تحت ظرفية الزمان بخلاف كان فإن لفظ كان من الكون و هو عين الوجود فكأنه يقول اللّٰه موجود و لا شيء معه في وجوده فما هي من الألفاظ التي ينجر معها الزمان إلا بحكم التوهم و لهذا لا ينبغي أن يقال كان فعل ماض في إعرابه على طريقة النحويين و قد بوب عليها الزجاجي و سماها بالحرف الذي يرفع الاسم و ينصب الخبر و لم يجعلها فعلا فينجر معها الزمان الماضي و الحال و المستقبل و بهذا القدر المتوهم الذي يتخيل في هذه الصيغة التي هي كان و يكون و سيكون من الزمان أشبهت الفعل الصحيح الذي هو قام و يقوم و سيقوم و جعلوا قائما مثل كائن فأجروها مجرى الأفعال من هذا الوجه و إذا كان أمرها على هذا فيطلق من الوجه الذي لا يقبل به ظرفية الزمان على اللّٰه تعالى و هو قوله



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