الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

قيل إن الأنصار نفس اللّٰه بهم عن نبيه صلى اللّٰه عليه و سلم ما كان فيه من مقاساة الكفار المشركين و الأنفاس روائح القرب الإلهي فلما تنسمت مشام العارفين عرف هذه الأنفاس و توفرت الدواعي منهم إلى طلب محقق ثابت القدم في ذلك المقام ينبئهم بما في طي ذلك المقام الأقدس و ما جاءت به هذه الأنفاس من العرف إلا نفس من الأسرار و العلوم بعد البحث بالهمم و التعرض لنفحات الكرم عرفوا بشخص إلهي عنده السر الذي يطلبونه و العلم الذي يريدون تحصيله و أقامه الحق فيهم قطبا يدور عليه فلكهم و أما ما يقوم به ملكهم يقال له مداوي الكلوم فانتشر عنه فيهم من العلم و الحكم و الأسرار ما لا يحصرها كتاب

[مداوي الكلوم و علم الكيمياء]

و أول سر أطلع عليه الدهر الأول الذي عنه تكونت الدهور و أول فعل أعطى فعل ما تقتضيه روحانية السماء السابعة سماء كيوان فكان يصير الحديد فضة بالتدبير و الصنعة و يصير الحديد ذهبا بالخاصية و هو سر عجيب و لم يطلب على هذا رغبة في المال و لكن رغبة في حسن المال ليقف من ذلك على رتبة الكمال و أنه مكتسب في التكوين فإن المرتبة الأولى من عقد الأبخرة المعدنية بالحركات الفلكية و الحرارة الطبيعية زئبقا و كبريتا و كل متكون في المعدن فإنه يطلب الغاية الذي هو الكمال و هو الذهب لكن تطرأ عليه في المعدن علل و أمراض من يبس مفرط أو رطوبة مفرطة أو حرارة أو برودة تخرجه عن الاعتدال فيؤثر فيه ذلك المرض صورة تسمى الحديد أو النحاس أو الأسرب أو غير ذلك من المعادن فأعطى هذا الحكيم معرفة العقاقير و الأدوية المزيل استعمالها تلك العلة الطارئة على شخصية هذا الطالب درجة الكمال من المعدنيات و هي الذهب فأزالها فصح و مشى حتى لحق بدرجة الكمال و لكن لا يقوي في الكمالية قوة الصحيح الذي ما دخل جسمه مرض فإن الجسد الذي يدخله المرض بعيد أن يتخلص و ينقى الخلوص الذي لا يشوبه كدر و هو الخلاص الأصلي كيحيى في الأنبياء و آدم عليهما السلام و لم يكن الغرض إلا درجة الكمال الإنساني في العبودية فإن اللّٰه خلقه ﴿فِي أَحْسَنِ تَقْوِيمٍ﴾ [التين:4]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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