الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فجاء بكل و هي تقتضي الإحاطة و العموم و قد قلنا إن الأعيان القابلة للصور لا أجل لها فبما ذا خرجت من حكم كل قلنا ما خرجت و إنما الأجل الذي للعين إنما هو ارتباطها بصورة من الصور التي تقبلها فهي تنتهي في القبول لها إلى أجل مسمى و هو انقضاء زمان تلك الصورة فإذا وصل الأجل المعلوم عند اللّٰه في هذا الارتباط انعدمت الصورة و قبل العين صورة أخرى فقد جرت الأعيان إلى أجل مسمى في قبول صورة ما كما جرت الصورة إلى أجل مسمى في ثبوتها لتلك العين الذي كان محل ظهورها فقد عم الكل الأجل المسمى فقد قدر اللّٰه لكل شيء أجلا في أمر ما ينتهي إليه ثم ينتقل إلى حالة أخرى يجري فيها أيضا إلى أجل مسمى فإن اللّٰه خلاق على الدوام مع الأنفاس فمن الأشياء ما يكون مدة بقائه زمان وجوده و ينتهي إلى أجله في الزمان الثاني من زمان وجوده و هي أقصر مدة في العالم و فعل اللّٰه ذلك ليصح الافتقار مع الأنفاس من الأعيان إلى اللّٰه تعالى فلو بقيت زمانين فصاعدا لاتصفت بالغنى عن اللّٰه في تلك المدة و هذه مسألة لا يقول بها أحد إلا أهل الكشف المحقق منا و الأشاعرة من المتكلمين و موضع الإجماع من الكل في هذه المسألة التي لا يقدرون على إنكارها الحركة إلا طائفتين من يجعل الحركة نسبة لا وجود لها و هو الباقلاني من المتكلمين و أصحاب الكمون و الظهور القائلون به و إن قال القائلون بالكمون و الظهور بذلك فإنهم تحت حيطة كل بهذا المذهب فإنه قد جرى في كمونه إلى أجل مسمى و هو زمان ظهوره فقد انقضت مدة كمونه و جرى في ظهوره إلى أجل مسمى و هو زمان كمونه فقد انقضت مدة ظهوره و لا يلزم من جريانهم إلى الأجل أن المراد عدمهم بل يجوز أن يكون له العدم و يجوز أن يكون الانتقال مع بقاء العين الموصوفة بالجري و يجوز أن يكون منه أجل يعدمه و منه ما يكون له أجل بانتقاله يعدمه و هو الذي نذهب إليه و نقول به*

[إن لله أرواحا من الملائكة ما لا يدري مقداره]



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