الفتوحات المكية

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و لم يقل هو كذا فعلوم الغيب تنزل بها الأرواح على قلوب العباد فمن عرفهم تلقاهم بالأدب و أخذ منهم بالأدب و من لم يعرفهم أخذ علم الغيب و لا يدري ممن كالكهنة و أهل الزجر و أصحاب الخواطر و أهل الإلهام يجدون العلم بذلك في قلوبهم و لا يعرفون من جاءهم به و أهل اللّٰه يشاهدون تنزل الأرواح على قلوبهم و لا يرون الملك النازل إلا أن يكون المنزل عليه نبيا أو رسولا فالولي يشهد الملائكة و لكن لا يشهدها ملقية عليه أو يشهدون الإلقاء و يعلمون أنه من الملك من غير شهود فلا يجمع بين رؤية الملك و الإلقاء منه إليه إلا نبي أو رسول و بهذا يفترق عند القوم و بتميز النبي من الولي أعني النبي صاحب الشرع المنزل و قد أغلق اللّٰه باب التنزل بالأحكام المشروعة و ما أغلق باب التنزل بالعلم بها على قلوب أوليائه و أبقى لهم التنزل الروحاني بالعلم بها ليكونوا على بصيرة في دعائهم إلى اللّٰه بها كما كان من اتبعوه و هو الرسول و لذلك قال ﴿أَدْعُوا إِلَى اللّٰهِ عَلىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا وَ مَنِ اتَّبَعَنِي﴾ فهو أخذ لا يتطرق إليه تهمة عندهم و لهذا قال القشيري في الثناء على علم أهل اللّٰه ما ظنك بعلم علم العلماء فيه تهمة لأن غيرهم من العلماء ما هم على بصيرة لا في الفروع و لا في الأصول أما في الفروع فللاحتمال في التأويل و أما في الأصول فلما يتطرق إلى الناظر صاحب الدليل إلى دليله من الدخل عليه فيه و الشبه من نفسه أو من نفس غيره فيتهم دليله لهذا الدخل و قد كان يقطع به و أهل البصائر من اللّٰه لا يتصفون بهذا في علمهم و ذلك العلم هو حق اليقين أي حق استقراره في القلب أن لا يزلزله شيء عن مقره و هذا القدر كاف في علم الروح الملقي و أما كيفية الإلقاء فموقوفة على الذوق و هو الحال و لكن أعلمك أنه بالمناسبة لا بد أن يكون قلب الملقي إليه مستعدا لما يلقى إليه و لولاه ما كان القبول و ليس الاستعداد في القبول و إنما ذلك اختصاص إلهي نعم قد تكون النفوس تمشي على الطريق الموصلة إلى الباب الذي يكون منه إذا فتح هذا الإلقاء الخاص و غيره فإذا وصلوا إلى هذا الباب وقفوا حتى يروا بما ذا يفتح في حقهم فإذا فتح خرج الأمر واحد العين و قبله من خلف الباب بقدر استعدادهم الذي لا تعمل لهم فيه بل اختص اللّٰه كل واحد باستعداد و هناك تتميز الطوائف و الأتباع من غير الأتباع و الأنبياء من الرسل و الرسل من الأتباع المسلمين في العرف أولياء فيتخيل من لا علم له أن سلوكهم إلى الباب سبب به وقع الكسب لما حصل لهم عند الفتح و لو كان ذلك لتساوى الكل و ما تساوى فما كان ذلك إلا بالاستعداد الذي هو غير مكتسب و من هنا أخطأ من قال باكتساب النبوة من النظار و لا يقول باكتسابها إلا من يرى أنها ليست من اللّٰه و إنما هي فيض من العقل و الأرواح العلوية على بعض النفوس المنعوتة بالصفاء و التخلص من أسباب الطبيعة فانتقش فيها صور ما في العالم لصفائها و صفاؤها مكتسب فما حصله صفاؤها فهو مكتسب و هذا غلط بل الصفاء صحيح و نقش صور ما في العالم صحيح في نفس من لها هذه الصفة من الاطلاع و كون هذا الشخص دون غيره من أهل الصفاء مثله رسولا و نبيا و صاحب تشريع دون غيره اختصاص إلهي ينقشه في نفسه ما في صور العالم فإن اللوح المحفوظ هو العام لما ذكرناه ففيه منقوش صورة الرسول و رسالته و صورة النبي و نبوته و صورة الولي و ولايته فإذا صفت النفس و انتقش فيها ما في اللوح لم يلزم أن يكون رسولا بل انتقش فيها من يكون رسولا و تميزت الأشياء عندها و هذا خلاف ما توهموه مما يحصل بصفاء النفوس فانتقشت فيها المراتب و أصحابها علوا و سفلا و أما حكم الاستعداد الذي يقبل الإلقاء بالمناسبة التي هي الحبل الإلهي الحاصل في القلب الموجود بالاستعداد إذا اتصل بحضرة الحق نزل الإلقاء عليه و هو الطريق فيتنور القلب بما حصل فيه من علم الغيب و لا سيما إذا كان من العلم بالله الذي لا تعلق له بالكون كالعلم بأنه غني عن العالمين و بتنزيهه عن الأوصاف و ب‌ ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11]



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