الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5574 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و أما البوادة فهي أيضا فجأة إلهية تفجأ القلوب من حضرة الغيب بحكم الوقت و لا تأتي في اصطلاحهم هذه البوادة إلا أن تعطي فرحا في القلب أو حزنا فتضحك و تبكي و هو قول أبي يزيد ضحكت زمانا و بكيت زمانا يريد أنه كان في حكم البوادة ثم قال و أنا اليوم لا أضحك و لا أبكي يعرف بانتقاله من تأثر حال البوادة فيه إلى حال العظمة و لا تكون البوادة إلا فيمن يتصف و من لا وصف له لا بديهة له غير أنه لما كانت البوادة من حضرة الهو لم يعرف متى تأتي فإذا وردت إنما ترد فجأة و بغتة فتعطي ما وردت به و تنصرف و أما البديهة التي تعرفها الناس فليست تتقيد بفرح و لا ترح فما هي التي اصطلح عليها القوم و هي عينها إلا أن القوم ما سموا بديهة إلا ما أوجب فرحا أو ترحا و أما إذا لم يوجب ذلك فأحوالهم فيها أحوال الناس غير أن أهل الطريق يعلمون أن البوادة إذا وردت لا يخطئ حكمها البتة و لها الإصابة في كل ما ترد به و لهذا إذا سأل الشيوخ تلاميذهم عن مسألة على تعليم الأخذ عن اللّٰه لا يتركونه يفكر في الجواب فيكون جوابهم نتيجة فكر و إنما يقولون لا تجب إلا بما يخطر لك فيما سألت عنه عند السؤال فتنظر إلى قلبك ما ألقى فيه عند ورود السؤال فاذكره ببادئ الرأي فإن لم يفعل فلا يقبل منه الجواب و إن أصاب عن فكر و نظر فإن اللّٰه لا يغفل في كل نفس عن قلب أحد من عباده بل هو الرقيب عليه فيهبه في كل نفس بحسب ما يريده سبحانه فأصحاب القلوب المراقبين قلوبهم من أجل آثار ربهم فيها يجيبون بورود الوارد في كل نفس فيعملون بمقتضاه إن وافق الميزان الشرعي الذي قد شرع لسعادتهم و إن لم يوافق طريق السعادة فإن لهم لهذا الوارد أخذا مخصوصا فيأخذونه تنبيها من الحق و تعريفا لا مؤثرا في ظاهرهم و لا باطنهم فهذا قد بينا معنى البوادة و الهجوم عند القوم ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]

«الباب الموفي ستين و مائتان في معرفة القرب»

و هو القيام بالطاعات و قد يطلقونه و يريدون به قرب



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!