الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

اعلم أن الصحو عند القوم رجوع إلى الإحساس بعد الغيبة بوارد قوي و اعلم أنهم قد جعلوا في حد السكر أنه وارد قوي و كذلك الصحو أنه وارد قوي و ما قالوا إنه أقوى و ذلك أن المحل الموصوف بالسكر و الصحو لهذين الواردين مع استوائهما في القوة فيتمانعان بل وارد السكر أولى فإنه صاحب المحل فله المنع و لكن لا يتمكن لورود وارد على محل إلا بنسبة و استعداد من المحل يطلب بتلك النسبة أو الاستعداد ذلك الوارد المناسب و إن تساوت الواردات فإذا جاء الوارد و في المحل غيره فوجد النسبة و الاستعداد يطلبه حكم عليه و أزال عنه حكم الوارد الآخر الذي كان فيه لا لقوته و ضعف الآخر بل للنسبة و الاستعداد*

[الصحو لا يمكن إلا بعد السكر]

و اعلم أنه لا يكون صحو في هذا الطريق إلا بعد سكر و أما قبل السكر فليس بصاح و لا هو صاحب صحو و إنما يقال فيه ليس بصاحب سكر بل يكون صاحب حضور أو بقاء و غير ذلك ثم اعلم أن صحو كل سكران بحسب سكره على ميزان صحيح فلا بد أن يأتي بعلم محقق استفاده في غيبة سكره فإن كان صحوه صيلما فما كان قط سكران سكر الطريق إذ العلم شرط في الصاحي من السكر هكذا هو طريق أهل اللّٰه لأن الجود الإلهي ما فيه بخل و لا في قدرته عجز فإذا صحا كتم ما ينبغي أن يكتم و أذاع ما ينبغي أن يذاع و قوله في حال صحوه مقبول لأنه شاهد عدل و قول السكران و إن كان شاهد عدل فإنه لا يقبل إذا ناقض قول الصاحي و إن كان حقا و لكن إذا قيل الحق في غير موطنه لم يقبل و ربما عاد وباله على قائله مع كونه حقا إذ كل قول حق لا يكون محمودا عند اللّٰه و هذا معلوم مقرر في شرع اللّٰه في العموم و الخصوص كالشبلي و الحلاج فقال الشبلي شربت أنا و الحلاج من كأس واحد فصحوت و سكر فعربد فحبس حتى قتل و الحلاج في الخشبة مقطوع الأطراف قبل أن يموت فبلغه قول الشبلي فقال هكذا يزعم الشبلي لو شرب ما شربت لحل به مثل ما حل بي أو قال مثل قولي فقبلنا قول الشبلي و رجحناه على قول الحلاج لصحوه و سكر الحلاج فالصحو بالله و السكر بالله لا بد فيه من علم بالله و ما لا يعطي علما فليس بصحو الطريق و لا سكره و قد تقدم تقسيم السكر فذلك التقسيم يرد على الصحو فإنه لكل سكر صحو إن لم يمت صاحب السكر في حال سكره فيكون صحوه في البرزخ و منهم من يبقى على سكره في البرزخ إلى البعث

[تقدم السكر الطبيعي أو العقلي على السكر الإلهي]



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