الفتوحات المكية

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و أسكر القوم دور كأس *** و كان سكرى من المدير

فمن أسكره الشهود فلا صحو له البتة و كل حال لا يورث طربا و بسطا و إدلالا و إفشاء أسرار إلهية فليس بسكر و إنما هو غيبة أو فناء أو محق و لا يقاس سكر القوم في طريق اللّٰه على سكر شارب الخمر فإنه ربما أورث بعض من يشربه غما و بكاء و فكرة و ذلك لما يقتضيه مزاج ذلك الشارب و يسمونه سكران و مثل هذا لا يكون في سكر الطريق و قليل من الناس من يفرق بين الحيوان و السكران و عندنا في العلم الطبيعي أن شارب الخمر إذا أورثه غما و بكاء و حزنا و فكرة و إطراقا لما يقتضيه طبعه و مزاجه فليس بسكران و لا هو صاحب سكر فإن بعض الأمزجة لا تقبل السكر و لا أثر له فيها فغيبة السكران ليست عن إحساسه و إنما غيبته عن مقابل الطرب لا غير و نظير هؤلاء الذين لا يطربون نظير أصحاب الفكرة و الغيبة و الفناء و يفارق السكر سائر الغيبات لأن الصحو لا يكون إلا عن سكر و السكر يتقدم صحوه و ليس الحضور مع الغيبة كذلك و لا الفناء مع البقاء كذلك لكنه مثل الصعق مع الإفاقة و النوم مع اليقظة فإن النوم مقدم على الانتباه و الغشية متقدمة على الإفاقة و إنما ذكرنا هذا التفصيل من أجل مذهبهم في حد السكر أنه غيبة بوارد قوي فأطلقوا عليه اسم الغيبة فيتخيل من لا ذوق له أن حكمه حكم الغيبة فيقيس فيخطئ في تربيته للمريد إن كان من المتشيخين فيلتبس عليه الأمر فلا يفرق في حال المريد بين سكره و غيبته و فنائه و السكران في هذا الطريق لا يغيب عن إحساسه فإن غاب كما يراه الحنفيون في سكر شارب الخمر فقد انتقل عندنا من حال السكر إلى حال فناء أو غيبة أو محق و لم يعقب سكره صحو بل انتقل من حال سكر إلى حال فناء أو غيره من الأحوال المغيبة عن بعضه أو كله و لا يتخيل أن السكر لما كان على هذه المراتب المتميزة أنه يمكن أن يكون لصاحب هذه الحال سكران أو يجمعها كلها لما هو عليه من الحقائق كما قررنا في بعض المسائل من جمع الإنسان لأمور كثيرة لحقائق تطلبها منه و لا سيما و قد أنشد بعض من أسكره الخمر و الهوى فقال



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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