الفتوحات المكية

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كما يجده الظمآن المضطر عند ما يسفر له السراب عن عدم الماء فيرجع إلى اللّٰه بخلاف النعم فإنها أعظم حجاب عن اللّٰه إلا من و فقه اللّٰه و أما مكر اللّٰه بالخاصة فهو مستور في إبقاء الحال عليه مع سوء الأدب الواقع منه و هو التلذذ بالحال و الوقوف معه و ما يورث من الإدلال فيمن قام به و الهجوم على اللّٰه و عدم طلب الانتقال منه و ما قال اللّٰه لنبيه ﴿وَ قُلْ رَبِّ زِدْنِي عِلْماً﴾ [ طه:114] و ما أسمعنا ذلك إلا تنبيها لنقول ذلك و نطلبه من اللّٰه و لو كان خصوصا بالنبي لم يسمعنا أو كان يذكر أنه خاص به كما قال في نكاح الهبة فللحال لذة و حلاوة في النفس يعسر على بعض النفوس طلب الانتقال من الأمر الذي أورثه ذلك الحال بل لا يطلب المزيد إلا منه و جهل أن الأحوال مواهب و أما المكر الذي في خصوص الخصوص و هو في إظهار الآيات و خرق العوائد من غير أمر و لا حد الذي هو ميزانها فإنه لما وجب على الأولياء سترها كما وجب في الرسل إظهارها إذ أمكن الولي منها و أعطى عين التحكيم في العالم يطلب الممكور به لنقص حظ عن درجة غيره يريد الحق ذلك به و جعل فيهم طلبا لطريق إظهارها من حيث لا يشعر أن ذلك مكر إلهي يؤدي إلى نقص حظ فوقع الإلهام في النفس بما في إظهار الآيات على أيديهم من انقياد الخلق إلى اللّٰه عزَّ وجلَّ و إنقاذ الغرقى من بحار الذنوب المهلكة و أخذهم عن المألوفات و إن ذلك من أكبر ما يدعى به إلى اللّٰه و لهذا كان من نعت الأنبياء و الرسل و يرى في نفسه أنه من الورثة و أن هذا من ورث الأحوال فيحجبهم ذلك عما أوجب اللّٰه على الأولياء من ستر هذه الآيات مع قوتهم عليها و غيبهم عن ما أوجب اللّٰه على الرسل من إظهارها لكونهم مأمورين بالدعاء إلى اللّٰه ابتداء و الولي ليس كذلك إنما يدعو إلى اللّٰه بحكاية دعوة الرسول و لسانه لا بلسان يحدثه كما يحدث لرسول آخر و الشرع مقرر من عند العلماء به فالرسول على بصيرة في الدعاء إلى اللّٰه بما أعلمه اللّٰه من الأحكام المشروعة و الولي على بصيرة في الدعاء إلى اللّٰه بحكم الاتباع لا بحكم التشريع فلا يحتاج إلى آية و لا بينة فإنه لو قال ما يخالف حكم الرسول لم يتبع في ذلك و لا كان على بصيرة فلا فائدة لإظهار الآية بخلاف الرسول فإنه ينشئ التشريع و ينسخ بعض شرع مقرر على يد غيره من الرسل فلا بد من إظهار آية و علامة تكون دليلا على صدقه إنه يخبر عن اللّٰه إزالة ما قرره اللّٰه حكما على لسان رسول آخر أعلاما بانتهاء مدة الحكم في تلك المسألة فيكون الولي مع خصوصيته قد ترك واجبا فنقصه من مرتبته ما يعطيه الوقوف مع ذلك الواجب و العمل به فلا شيء أضر بالعبد من التأويل في الأشياء فالله يجعلنا على بصيرة من أمرنا و لا يتعدى بنا ما يقتضيه مقامنا و الذي أسأل اللّٰه تعالى أن يرزقنا أعلى مقام عنده يكون لأعلى ولي فإن باب الرسالة و النبوة مغلق و ينبغي للعالم أنه لا يسأل في المحال و بعد الأخبار الإلهي يغلق هذا الباب فلا ينبغي أن نسأل فيه فإن السائل فيه يضرب في حديد بارد إذ لا يصدر هذا السؤال من مؤمن أصلا قد عرف هذا و يكفي الولي من اللّٰه أن جعله على بصيرة في الدعاء إلى اللّٰه تعالى من حيث ما يقتضيه مقام الولاية و الاتباع كما جعل الرسول يدعو



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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