الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
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يقول فأردت الرجوع إلى العدم فإني أقرب إلى الحق في حال اتصافي بالعدم مني إليه في حال اتصافي بالوجود لما في الوجود من الدعوى و طلب حالة الفناء عن الحق للبقاء بالحق هو أن يرجع إلى حالة العدم التي كان عليها فهذه غربة أيضا موجودة واقعة عن وطن بغير اختيار العبد و من غربة العارفين بالله غربتهم عن صفاتهم عند وجودهم الحق عين صفاتهم و هذه غربة حقيقية فإن الصفة مضافة إليهم بكلام اللّٰه و هو الصادق فهم أهل صفة و لكن ما هي تلك الصفة و إلى من تضاف حقيقة فإن العالم يضاف إلى اللّٰه بأنه عبد اللّٰه كما إن اللّٰه مضاف إلى العالم فإنه رب العالمين فإضافة العبد مستندة إلى إضافة الحق فأول غربة اغتربناها وجودا حسيا عن وطننا غربتنا عن وطن القبضة عند الإشهاد بالربوبية لله علينا ثم عمرنا بطون الأمهات فكانت الأرحام وطننا فاغتربنا عنها بالولادة فكانت الدنيا وطننا و اتخذنا فيها أوطانا فاغتربنا عنها بحالة تسمى سفر أو سياحة إلى أن اغتربنا عنها بالكلية إلى موطن يسمى البرزخ فعمرناه مدة الموت فكان وطننا ثم اغتربنا عنه بالبعث إلى أرض الساهرة فمنا من جعلها وطنا أعني القيامة و منا من لم يجعله وطنا فإنه ظرف زماني و الإنسان في تلك الأرض كالماشي في سفره بين المنزلتين و يتخذ بعد ذلك أحد الموطنين إما الجنة و إما النار فلا يخرج بعد ذلك و لا يغترب و هذه هي آخر الأوطان آخر الأوطان التي ينزلها الإنسان ليس بعدها وطن مع البقاء الأبدي و أما قولهم في الغربة إنها الاغتراب عن الحال من النفوذ فيه فتلك غربة أخرى و ذلك أن أصحاب الأحوال لا شك أن لهم النفوذ و التحكم و بها يكون خرق العوائد لهم المشهورة في العالم فإذا اطلعوا على إن الحال لا أثر له فيما ظهر له من الفعل عند قيامه بهم فيما أعطاه الكشف لم يرضوا به فاغتربوا عنه و قالوا الوقوف معه وبال على صاحبه فيرون أن الغربة عنه غاية السعادة و أنه من أعظم حجاب يحجب به الإنسان و أنه موضع المكر و الاستدراج فإن العاقل لا يقف في مواطن إمكان المكر فيها بل ينبغي له أن لا يقف إلا في موضع يكون على بصيرة فيه كما فعل موسى في غربة الوطن ﴿فَفَرَرْتُ مِنْكُمْ لَمّٰا خِفْتُكُمْ فَوَهَبَ لِي رَبِّي حُكْماً وَ جَعَلَنِي مِنَ الْمُرْسَلِينَ﴾ [الشعراء:21]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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