الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فمن أسرار العالم أنه ما من شيء يحدث إلا و له ظل يسجد لله ليقوم بعبادة ربه على كل حال سواء كان ذلك الأمر الحادث مطيعا أو عاصيا فإن كان من أهل الموافقة كان هو و ظله على السواء و إن كان مخالفا ناب ظله منابه في الطاعة لله قال اللّٰه تعالى ﴿وَ ظِلاٰلُهُمْ بِالْغُدُوِّ وَ الْآصٰالِ﴾ [الرعد:15]

[السلطان ظل اللّٰه في الأرض]

السلطان ظل اللّٰه في الأرض إذ كان ظهوره بجميع صور الأسماء الإلهية التي لها الأثر في عالم الدنيا و العرش ظل اللّٰه في الآخرة فالضلالات أبدا تابعة للصورة المنبعثة عنها حسا و معنى فالحس قاصر لا يقوي قوة الظل المعنوي للصورة المعنوية لأنه يستدعي نورا مقيدا لما في الحس من التقييد و الضيق و عدم الاتساع و لهذا نبهنا على الظل المعنوي بما جاء في الشرع من أن السلطان ظل اللّٰه في الأرض فقد بان لك أن بالظلالات عمرت الأماكن فهنا قد ذكرنا طرفا مما يليق بهذا الباب و لم نمعن فيه مخافة التطويل و فيما أوردناه كفاية لمن تنبه إن كان ذا فهم سليم و تذكرة لمن شاهد و علم و اشتغل بما هو أعلى أو غفل بما هو أنزل فيرجع إلى ما ذكرناه عند ما ينظر في هذا الباب

(فصل) [مراتب أهل الفترة]

و أما مرتبة العالم الذي بين عيسى عليه السّلام و محمد صلى اللّٰه عليه و سلم و هم أهل الفترة فهم على مراتب مختلفة بحسب ما يتجلى لهم من الأسماء عن علم منهم بذلك و عن غير علم فمنهم من وحد اللّٰه بما تجلى لقلبه عند فكره و هو صاحب الدليل ﴿فَهُوَ عَلىٰ نُورٍ مِنْ رَبِّهِ﴾ [الزمر:22] ممتزج بكون من أجل فكره فهذا يبعث أمة وحده كقُسِّ بن ساعدة و أمثاله فإنه ذكر في خطبته ما يدل على ذلك فإنه ذكر المخلوقات و اعتباره فيها و هذا هو الفكر و منهم من وحد اللّٰه بنور وجده في قلبه لا يقدر على دفعه من غير فكرة و لا روية و لا نظر و لا استدلال فهم على نور من ربهم خالص غير ممتزج بكون فهؤلاء يحشرون أخفياء أبرياء و منهم من ألقى في نفسه و أطلع من كشفه لشدة نوره و صفاء سره لخلوص يقينه على منزلة محمد صلى اللّٰه عليه و سلم و سيادته و عموم رسالته باطنا من زمان آدم إلى وقت هذا المكاشف فآمن به في عالم الغيب على شهادة منه و بينة من ربه و هو قوله تعالى ﴿أَ فَمَنْ كٰانَ عَلىٰ بَيِّنَةٍ مِنْ رَبِّهِ وَ يَتْلُوهُ شٰاهِدٌ مِنْهُ﴾ [هود:17] يشهد له في قلبه بصدق ما كوشف به فهذا يحشر يوم القيامة في ضنائن خلقه و في باطنية محمد صلى اللّٰه عليه و سلم و منهم من تبع ملة حق ممن تقدمه كمن تهود أو تنصر أو اتبع ملة إبراهيم أو من كان من الأنبياء لما علم و اعلم أنهم رسل من عند اللّٰه يدعون إلى الحق لطائفة مخصوصة فتبعهم و آمن بهم و سلك سننهم فحرم على نفسه ما حرمه ذلك الرسول و تعبد نفسه مع اللّٰه بشريعته و إن كان ذلك ليس بواجب عليه إذ لم يكن ذلك الرسول مبعوثا إليه فهذا يحشر مع من تبعه يوم القيامة و يتميز في زمرته في ظاهريته إذ كان شرع ذلك النبي قد تقرر في الظاهر و منهم من طالع في كتب الأنبياء شرف محمد صلى اللّٰه عليه و سلم و دينه و تواب من اتبعه فآمن به و صدق على علم و إن لم يدخل في شرع نبي ممن تقدم و أتى مكارم الأخلاق فهذا أيضا يحشر في المؤمنين بمحمد صلى اللّٰه عليه و سلم فآمن به فله أجران و هؤلاء كلهم سعداء عند اللّٰه و منهم من عطل فلم يقر بوجود عن نظر قاصر ذلك القصور هو بالنظر إليه غاية قوته لضعف في مزاجه عن قوة غيره و منهم من عطل لا عن نظر بل عن تقليد فذلك شقي مطلق و منهم من أشرك عن نظر أخطأ فيه طريق الحق مع بذل المجهود الذي تعطيه قوته و منهم من أشرك لا عن استقصاء نظر فذلك شقي و منهم من أشرك عن تقليد فذلك شقي و منهم من عطل بعد ما أثبت عن نظر بلغ فيه أقصى القوة التي هو عليها لضعفها و منهم من عطل بعد ما أثبت لا عن استقصاء في النظر أو تقليد فذلك شقي فهذه كلها مراتب أهل الفترة الذين ذكرناهم في هذا الباب



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