الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و «قال عليه السّلام لما اشتد عليه كرب ما يلاقي من الأضداد إن نفس الرحمن يأتيني من قبل اليمن» فكانت الأنصار

[أن الموجودات هي كلمات اللّٰه التي لا تنفد]

اعلم أن الموجودات هي كلمات اللّٰه التي لا تنفد قال تعالى في وجود عيسى عليه السّلام إنه ﴿كَلِمَتُهُ أَلْقٰاهٰا إِلىٰ مَرْيَمَ﴾ [النساء:171] و هو عيسى عليه السّلام فلهذا قلنا إن الموجودات كلمات اللّٰه من حيث الدلالة السمعية إذ كان لا يصدقنا كل أحد فيما ندعي فيه الكشف أو التعريف الإلهي و الكلمات المعلومة في العرف إنما تتشكل عن نظم الحروف من النفس الخارج من المتنفس المتقطع في المخارج فيظهر في ذلك التقاطع أعيان الحروف على نسب مخصوصة فتكون الكلمات و بعد أن نبهتك على هذا لتجعل بالك لما نورده في هذا الباب فاعلم أن اللّٰه سبحانه ما استواء على عرشه إلا بالاسم الرحمن أعلاما بذلك أنه ما أراد بالإيجاد إلا رحمة بالموجودين و لم يذكر غيره من الأسماء و ذكر الاستواء على أعظم المخلوقات إحاطة من عالم الأجسام فإن الآلام ليس محلها إلا التركيب و أما البسائط فلا تقبل في ذاتها قيام معنى بها بل هي عين المعنى يدل على شمول الرحمة للعالم و إن طرأت عوارض البلايا فإنها رحمة كما ذكرنا في شرب الدواء الكرية ليس المقصود منه عذاب من شربه و لا إيلامه و إنما المقصود من استعماله ما يؤول إليه من استعمله من الراحة و العافية

[أن اللّٰه تعالى تسمى بالظاهر و الباطن]

ثم اعلم بعد هذا أن الحق تسمى بالظاهر و الباطن فالظاهر للصور التي يتحول فيها و الباطن للمعنى الذي يقبل ذلك التحول و الظهور في تلك الصور فهو عالم الغيب من كونه الباطن و الشهادة من كونه الظاهر و قد أعلمتك أن العالم نسخة إلهية على صورة حق و لذلك قلنا علم اللّٰه بالأشياء علمه بنفسه فلذلك حكمنا عليه بالصورة و بذا وردت الأسماء الإلهية و ورد في الصحيح



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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