الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4690 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

قد وصف نفسه بالرضى و الغضب في هاتين الصفتين و في أمثالهما مما وصف الحق بها نفسه و من تلك الحقيقة ظهرت في العالم و لهذا قلنا إن اللّٰه سبحانه علمه بنفسه علمه بالعالم لا يكون إلا هكذا فكل حقيقة ظهرت في العالم و صفة فلها أصل إلهي ترجع إليه لو لا ذلك الأصل الإلهي يحفظ عليها وجودها ما وجدت و لا بقيت و لا يعلم ذلك إلا الآحاد من أهل اللّٰه فإنه علم خصوص قال تعالى ﴿وَ غَضِبَ اللّٰهُ عَلَيْهِ﴾ [النساء:93] ثم ورد في الخبر ما هو أشد من هذا لمن عقل عن اللّٰه و هو ما «ورد في الحديث الصحيح من قول الأنبياء في القيامة أن اللّٰه قد غضب اليوم غضبا لم يغضب قبله مثله و لن يغضب بعده مثله» فهذا أشد من ذلك حيث اتصف غضبه بالحدوث و الزوال و في ذلك المقام «يقول محمد ﷺ فيمن بدل من أصحابه بعده سحقا سحقا» لاقتضاء الحال و الموطن فإن صاحب السياسة يجري في أحكامه بحسب الأحوال و المواطن و من نعوت المحبين الكمد و هو أشد حزن القلب لا يجري معه دمع إلا أن صاحبه يكون كثير التأوه و التنهد و هو حزن يجده في نفسه لا على فائت و لا تقصير و هذا هو الحزن المجهول الذي هو من نعوت المحبين ليس له سبب إلا الحب خاصة و ليس له دواء إلا وصال المحبوب فيفنيه شغله به عن الإحساس بالكمد و إن لم تقع الوصلة بالمحبوب اتصال ذوات فيكون المحبوب ممن يأمره فيشغله القيام بأوامره و فرحه بذلك عن الكمد فأكثر ما يكون الكمد إذا لم يقع بينه و بين المحبوب ما يشغله عن نفسه و ليس للمحب صفة تزول مع الاشتغال غير الكمد و نعوت المحبة كثيرة جدا مثل الأسف الوله البهت الدهش الحيرة الغيرة و الخرس السقام القلق الخمود البكاء التبريح و الوجد و السهاد و ما ذكره المحبون في أشعارهم من ذلك و كلامنا في هذا الباب ما يختص بحب اللّٰه لعباده و حب العباد لله لا غير ذلك فالله سبحانه قد ذكرا قواما بأنه يحبهم لصفة قامت بهم أحبهم لأجلها كما سلب محبته عن قوم لصفات قامت بهم ذكر ذلك في كتابه و عن لسان رسول اللّٰه ﷺ انتهى الجزء الثالث عشر و مائة بانتهاء السفر الخامس عشر (بسم اللّٰه الرحمن الرحيم)



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!