الفتوحات المكية

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سعرها موقدها

***

قلت لها ما تبتغي *** قالت وحوش حشرت :

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و إن ترى نفسي ما *** قد قدمت و أخرت :

و لما أسلم صاحب النظر و آمن و رأى من مقامه جميع ما رآه التابع في معراجه مشاهدة عين سأل أن يرى مقام المجرمين و هم المستحقون تلك الدار التي دخلوها بحكم الاستحقاق و علموا إن العلم أشرف حلة و أن الجهل أقبح حلية و أن جهنم ليست بدار لشيء من الخير كما إن الجنة ليست بدار لشيء من الشر و رأى الايمان قد قام بقلب من لا علم له بما ينبغي لجلال اللّٰه و رأى العلم بجلال اللّٰه و ما ينبغي له قد قام بمن ليس عنده شيء من الايمان و هذا العالم بعدم الايمان قد استحق دار الشقاء«و إن الجاهل»المؤمن قد استحق بالإيمان دار السعادة و الدرجات في مقابلة الدركات فسلب هذا العالم المستحق دار الشقاء علمه حتى كأنه ما علمه أو لم يعلم شيئا فيتعذب بجهله أشد منه من عذابه بحسه و هو أشده عليه فخلع علمه على هذا الجاهل المؤمن الذي دخل الجنة بإيمانه فنال المؤمن بذلك العلم الذي خلع عن هذا الذي استحق الإقامة بدار الشقاء درجة ما يطلبه ذلك العلم فيتنعم به نفسا و جسما و في الكثيب عند الرؤية و يعطي ذلك الكافر جهل هذا المؤمن الجاهل فينال بذلك الجهل درك ذلك من النار و تلك أشد حسرة تمر عليه فإنه يتذكر ما كان عليه من العلم و لا يعلم ذلك الآن و يعلم أنه سلبه و يكشف اللّٰه عن بصره حتى يرى مرتبة العلم الذي كان عليه في الجنان و يرى حلة علمه على غيره ممن لم يتعب في تحصيله و يطلب شيئا منه في نفسه فلا يقدر عليه و ينظر هذا المؤمن و يطلع على سواء الجحيم فيرى شر جهله على ذلك العالم الذي ليس بمؤمن فيزيد نعيما و فرحا فما أعظمها من حسرة و اتفق لي في هذه المسألة عجبا و ذلك أن بعض علماء الفلاسفة سمع مني هذه المقالة فربما أحالها في نفسه أو استخف عقلي في ذلك فاطلعه اللّٰه بكشف لم يشك فيه في نفسه بحيث أن تحقق الأمر على ما قلناه فدخل علي باكيا على نفسه و تفريطه و كانت لي معه صحبة فذكر لي الأمر و أناب و استدرك الفائت و آمن و قال لي ما رأيت أشد منها حسرة و تحقق قوله تعالى ﴿إِنِّي أَعِظُكَ أَنْ تَكُونَ مِنَ الْجٰاهِلِينَ﴾ [هود:46]



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