الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و مثل ما وجد منه آثارها و لم يطلق عليه منها اسم و لا فعل قوله ﴿عَجَّلْنٰا لَهُ فِيهٰا مٰا نَشٰاءُ﴾ [الإسراء:18]

(الباب الثامن عشر و مائة في مقام التوكل)

من يتخذ رب العباد وكيلا *** سلك الصراط و كان

﴿أَقْوَمُ قِيلاً﴾ [المزمل:6]

إن الذي فيه يوكل ربه *** عبد الإله يقارن التنزيلا

يا طالبا ما ليس يعلم ما له *** لا تتخذ غير الإله وكيلا

[التوكل اعتماد القلب على اللّٰه مع عدم الاضطراب عند فقد الأسباب]

التوكل اعتماد القلب على اللّٰه تعالى مع عدم الاضطراب عند فقد الأسباب الموضوعة في العالم التي من شأن النفوس أن تركن إليها فإن اضطرب فليس بمتوكل

[التوكل لا يكون للعالم إلا من كونه مؤمنا]

و هو من صفات المؤمنين فما ظنك بالعلماء من المؤمنين و إن كان التوكل لا يكون للعالم إلا من كونه مؤمنا كما قيده اللّٰه به و ما قيده سدى فلو كان من صفات العلماء و يقتضيه العلم النظري ما قيده بالإيمان فلا يقع في التوكل مشاركة من غير المؤمن بأي شريعة كان و سبب ذلك أن اللّٰه تعالى لا يجب عليه شيء عقلا إلا ما أوجبه على نفسه فيقبله بصفة الايمان لا بصفة العلم فإنه ﴿فَعّٰالٌ لِمٰا يُرِيدُ﴾ [هود:107] فلما ضمن ما ضمن و أخبر بأنه يفعل أحد الممكنين اعتمدنا عليه في ذلك على التعيين و صدقناه لأنه بالدليل و العلم النظري فعلم صدقه فسكوننا و عدم اضطرابنا عند فقد الأسباب إنما هو من إيماننا بضمانه فلو بقينا مع العلم اضطربنا فالعالم إذا سكن فمن كونه مؤمنا و كونه مؤمنا من كونه عالما بصدق الضامن

[الوكالة من يستحقها اللّٰه أم العالم أم لكل منهما نصيب]

و تحقيق الوكالة من يستحقها هل اللّٰه أو هل العالم أو هل لله منها نصيب و للعالم نصيب فاعلم إن الوكالة لا تصح إلا في موكل فيه و ذلك الموكل فيه أمر يكون للموكل ليس لغيره فيقيم فيه وكيلا و يتصرف فيما للموكل أن يتصرف فيه مطلقا فمن نظر أن الأشياء ما عدا الإنسان خلقت من أجل الإنسان كان كل شيء له فيه مصلحة يطلبها بذاته ملكا له و لما جهل مصالح نفسه و مصالحه ما فيها سعادته خاف من سوء التصرف في ذلك و «قد ورد فيما أوحى اللّٰه لموسى يا ابن آدم خلقت الأشياء من أجلك و خلقتك من أجلي»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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