الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4052 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و هو من المقامات المستصحبة في الدنيا و الآخرة لا ينقطع لأن الإنسان حيث كان لا يزال صاحب قوت لأن الأمر لا يتناهى و كلامنا في الفائت المستأنف و أما الفائت الماضي فإنه لا يعود إذ لو عاد لتكرر أمر ما في الوجود و لا تكرار للتوسع الإلهي غير أنه إن كان الفائت الماضي مرضيا و هو لا يعود فحكم ذلك الفعل الفائت الماضي فهو إنما يجنيه في الآخرة و لو اتصف به في الدنيا فقد يتعلق الرجاء بتحصيل ما لو كان الفائت الماضي لم يفت حصل له فيحصل له مثل ذلك برجائه إن كان قد كان له وجود و انقضى أو عين ذلك المرجو إن كان لم يكن برجائه فإنه فائت مستأنف كان مهيا للفائت الماضي هذا غاية قوة الرجاء

[مثل الذي يفوته خير في الدنيا و يرى من له شيء من ذلك]

و «قد قال ﷺ في الذي يفوته خير الدنيا و يرى من له شيء من ذلك الخير يعمل به في طاعة اللّٰه لو كان لي مثل هذا العامل من الخير لفعلت مثل ما فعل» فهما في الأجر سواء فهذا قد فاته العمل و جنى ثمرته بالتمني و ساوى من لم يفته العمل و ربما أربى عليه لا بل أربى عليه فإن العامل مسئول ﴿لِيَسْئَلَ الصّٰادِقِينَ عَنْ صِدْقِهِمْ﴾ و هذا غير مسئول لأنه ليس بعامل و لا يكون هذا إلا لمن لم يعطه اللّٰه أمنيته من الخير الذي تمنى العمل به فإن أعطاه ما تمناه من الخير فليس له هذا المقام و لا هذا الأجر و ينتقل حكمه إلى ما يعمله فيما أعطاه اللّٰه من الخير و لا يبقى للتمني في الآخرة أثر فإن عمل به برا كان له و إن عمل غير ذلك كان في حكم المشيئة

[رجاء القوم في رحمة اللّٰه و رجاء العاصين]

و ليس رجاء القوم رجاء العاصين في رحمة اللّٰه ذلك رجاء آخر ما هو مقام و كلامنا في المقام و الرجاء عند بعضهم مقام إلهي و استدلوا عليه بقوله في غير آية ﴿لَعَلَّ﴾ [البقرة:21]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!