الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿فَإِنْ كُنْتَ فِي شَكٍّ مِمّٰا أَنْزَلْنٰا إِلَيْكَ فَسْئَلِ الَّذِينَ يَقْرَؤُنَ الْكِتٰابَ مِنْ قَبْلِكَ﴾ و معلوم أنه ليس في شك فالمقصود من هو في شك من الأمة و كذلك ﴿لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ﴾ [الزمر:65] و قد علم أنه لا يشرك فالمقصود من أشرك فهذه صفته فكذلك قيل له ﴿لِيَغْفِرَ لَكَ اللّٰهُ مٰا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِكَ وَ مٰا تَأَخَّرَ﴾ [الفتح:2] و هو معصوم من الذنوب فهو المخاطب بالمغفرة و المقصود من تقدم من آدم إلى زمانه و ما تأخر من الأمة من زمانه إلى يوم القيامة فإن الكل أمته

[الناس جميعا أمة محمد ﷺ من آدم إلى المهدى القائم]

فإنه ما من أمة إلا و هي تحت شرع من اللّٰه و قد قررنا إن ذلك هو شرع محمد صلى اللّٰه عليه و سلم من اسمه الباطن حيث كان نبيا و آدم بين الماء و الطين و هو سيد النبيين و المرسلين فإنه سيد الناس و هم من الناس و قد تقدم تقرير هذا كله فبشر اللّٰه محمدا صلى اللّٰه عليه و سلم بقوله ﴿لِيَغْفِرَ لَكَ اللّٰهُ مٰا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِكَ وَ مٰا تَأَخَّرَ﴾ [الفتح:2] بعموم رسالته إلى الناس كافة و كذلك قال إنا أرسلناك إلى الناس كافة : و ما يلزم الناس رؤية شخصه فكما وجه في زمان ظهور جسمه رسوله عليا و معاذا إلى اليمن لتبليغ الدعوة كذلك وجه الرسل و الأنبياء إلى أممهم من حين كان نبيا و آدم بين الماء و الطين فدعا الكل إلى اللّٰه فالناس أمته من آدم إلى يوم القيامة فبشره اللّٰه بالمغفرة لما تقدم من ذنوب الناس و ما تأخر منهم فكان هو المخاطب و المقصود الناس فيغفر اللّٰه للكل و يسعدهم و هو اللائق بعموم رحمته التي ﴿وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ﴾ [الأعراف:156] و بعموم مرتبة محمد صلى اللّٰه عليه و سلم حيث بعث إلى الناس كافة بالنص و لم يقل أرسلناك إلى هذه الأمة خاصة و لا إلى أهل هذا الزمان إلى يوم القيامة خاصة و إنما أخبره أنه مرسل إلى الناس كافة و الناس من آدم إلى يوم القيامة فهم المقصودون بخطاب مغفرة اللّٰه لما تقدم من ذنب و ما تأخر



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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