الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

فبالعبودة يمتثل الأمر دون مخالفة و هو إذا ﴿يَقُولُ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ﴾ [البقرة:117] من غير تردد فإنه ما ثم إلا العين الثابتة القابلة بذاتها للتكوين فإذا حصلت مظهرا و قيل لها افعل أو لا تفعل فإن خالفت فمن كونها مظهرا و إن امتثلت و لم تتوقف فمن حيث عينها ﴿إِنَّمٰا قَوْلُنٰا لِشَيْءٍ إِذٰا أَرَدْنٰاهُ أَنْ نَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ﴾ [النحل:40]

[بعبودية العبودة يتقدم محمد ﷺ إلى اللّٰه يوم القيامة]

فبهذه العبودية يتقدم إلى اللّٰه في ذلك اليوم أ لا تراه يسجد من غير أن يؤمر بالسجود لكن السجود في ذلك اليوم هو المأمور بالتكوين و لم يكن له محل الأعين محمد صلى اللّٰه عليه و سلم فتكون السجود في ذاته لأمر الحق له بتكوينه فسجد به محمد صلى اللّٰه عليه و سلم من غير أمر إلهي ورد عليه بالسجود فيقال له ارفع رأسك سل تعطه و اشفع تشفع ثم بعد ذلك في موطن آخر يؤمر الخلق بالسجود ليتميز المخلص من غير المخلص فذلك سجود العبودية

[العارفون بالله يعبدون ربهم من حيث العبودة]

فالعارفون بالله في هذه الدار يعبدون ربهم من حيث العبودة فما لهم نسبة إلا إليه سبحانه و من سواهم فإنهم ينسبون إلى العبودية فيقال قد قاموا بين يديه في مقام العبودية فهذا الذي يقدمه من العبودية إلى ربه و كل محقق بهذه المثابة يوم القيامة

(السؤال التاسع و السبعون)بأي شيء يختمه حتى يناوله مفاتيح الكرم

الجواب يختمه بالعبودية و هو انتسابه إلى العبودة كما قررنا و هي الدرجة الثانية فإن هذا المقام ما هو سوى درجتين درجة العبودة و هي العظمى المقدمة و درجة العبودية و هي الختام لأنه ما أمر بما يقتضيه أمر العبودة إلا بعد وجوده فأمر و نهي بوساطة هذا التركيب فأطاع و عصى و أناب و آمن و كفر و وحد و أشرك و صدق و كذب و لما و في حق الدرجة الثانية بما تستحقه العبودية من امتثال أوامر سيده و نواهيه ناوله مفاتح الكرم برد ما قدم إليه

(السؤال الثمانون)ما مفاتيح الكرم

الجواب سؤالات السائلين منا و منه و بنا و به

[السؤال الذي هو منا و بنا]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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