الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فلهذا شرع الدخول إلى مكة من كداء بفتح الكاف للفتح الإلهي في كاف التكوين من قوله ﴿كُنْ﴾ [البقرة:12] و المد للامداد الإلهي بالعطاء من العلم به الذي هو أشرف هبة يعطيها من قصده و المد في هذه الألفاظ زيادة و مكة موضع المزيد في كل خير لأنه فرع عن الأصل لأن الأصل في الكون الفقر و القصور و العجز و لهذا يجوز في ضرورة الشعر قصر الممدود لأنه رجوع إلى الأصل و لا يجوز له مد المقصور لأنه خروج عن الأصل فلا يخرج إلا بموجب و ما هو ثم

[الموجب للمد المزاد في الحرف من الكلمة]

فإن الموجب للمد المزاد في الحرف من الكلمة إنما هو الهمزة أولا كآمن و آخرا كجاء أو الحرف المشدد مثل الطامة و الصاخة و الدابة و التشديد هو تضعيف الحرف و التضعيف زيادة لأنه دخول حرف في حرف و هو الإدغام فهو ظهور عبد بصفة رب فكان له المزيد و أخذ المد إذ لم يكن له ذلك بالأصل و كذلك ظهور رب بصفة عبد في تنزل إلهي فهو من باب الإدغام تشريف للعبد من اللّٰه و كل لنفسه سعى

[سعى العبد و هرولة الرب]

فأما السعي في حق العبد فمعلوم محقق لافتقاره و أما الهرولة في السعي المنسوبة إلى اللّٰه فصفة تطلب الشدة في الطلب أكثر من طلب الساعي بغير صفة الهرولة فدل على إن الطلب هناك أشد لأجل تعطيل حكم ما تقتضيه الأسماء الإلهية و لهذا يقول في تجليه هل من نائب فأتوب عليه فهو سؤال من الاسم التواب هل من داع فأجيبه فهذا لسان الاسم المجيب هل من مستغفر فاغفر له هذا لسان الاسم الغفور لأنه إن لم يكن في الكون من يستدعي هذا الاسم و إلا بقي معطل الحكم فلهذا كان سعيه هرولة و طلبه أشد لأنه لا يليق به النقص و العبد كله نقص و ضعف فليس له لضعفه شدة السرعة في السعي لأنه يفتقر إلى المعين بقوله ﴿وَ إِيّٰاكَ نَسْتَعِينُ﴾ [الفاتحة:5]

[خلفاء الحق في العباد لهم الأمر و النهى]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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