الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«قال عليه السلام أو ولد صالح يدعو له ولدا كان أو سبطا و ذكرا أو أنثى» بقول اللّٰه تعالى لمحمد صلى اللّٰه عليه و سلم إن الذي ألحق بك الشين هو الأبتر فلم يعقب و عقب الشيء مؤخره و لهذا قلنا في الذنب إنه مؤخر لأنه في عقب الدابة و بعدمه يكون أبتر فلو لم تذنبوا لجاء اللّٰه بقوم يذنبون فيغفر لهم و لم يقل فيعاقبهم فغلب المغفرة و جعل لها الحكم فاصل وجود الذنب بذاته لما يتضمنه من المغفرة و المؤاخذة فيطلب تأثير الأسماء و ليس أحد الاسمين المتقابلين في الحكم أولى من الآخر لكن سبقت الرحمة لغضب في التجاري فلم تدع شيئا إلا وسعته رحمته و من رحمة الطبيب بالعليل صاحب الأكلة إدخال الألم عليه بقطع رجله فافهم و اجعل بالك

[مؤاخذات الحق لعباده تطهير و رحمة]

فمؤاخذات الحق عباده في الدنيا الآخرة تطهير و رحمة و التنبيه أيضا على ذلك إن العقاب لا يكون إلا في الذنب و العقوبة لفظة تقتضي التأخير عن المتقدم فهي تأتي عقيبه فقد تجد العقوبة الذنب في المحل و قد لا تجده إما بأن يقلع عنه و إما أن يكون الاسم العفو و الغفور استعانا عليه بالاسم الرحيم فزال فترجع العقوبة خاسرة و يزول عن المذنب اسم المذنب لأنه لا يسمى مذنبا إلا في حال قيام الذنب به و هو المخالفة و الغفران في نفس الذنب و ما يأتي عقيبه لأنه غير متيقن بالمؤاخذة و الانتقام عليه فلا يأتي الغفران عقيبه فلا يسمى الغفران عقابا و جزاء الخير يسمى ثوابا لثورانه و عجلته فيكون في نفس الخير المستحق له لأنه من ثاب إلى الشيء إذا ثار إليه بالعجلة و السرعة و لهذا قال ﴿سٰارِعُوا﴾ [آل عمران:133] ﴿إِلىٰ مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ﴾ [آل عمران:133] و قال ﴿يُسٰارِعُونَ فِي الْخَيْرٰاتِ وَ هُمْ لَهٰا سٰابِقُونَ﴾ [المؤمنون:61]



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