الفتوحات المكية

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... ﴿وَ مَنْ يَتَوَلَّ فَإِنَّ اللّٰهَ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ﴾ [الحديد:24] فلم يذم أدبا معنا لنتعلم بل نزه نفسه بالغنى عما دعاهم إليه و أنهم إن أجابوا لذلك فإن الخير الذي فيه عليهم يرجع و اللّٰه غني عنه و بهذا وجد رخصة من قدم السعي ثم أتبعه بالحميد أي هو أهل الثناء بالمحامد في الأولى و الآخرة فله الحمد على كل حال سواء تحركت يا هذا بالصورة فاخترت لما تعطيه قوة الصورة أو تحركت عبدا مضطرا فإن الحمد لله في كل ذلك يقول اللّٰه بالحال لو لا صورتي ما اخترت و لم تكن مختارا فصورتي هي التي كانت لها الخيرة لا لك إقامة عذر للعبد و هذا من كرم اللّٰه فلا حرج فلهذا لم يعلق به الذم و لا تعرض لذكره في عدم الاقتداء و التأسي برسوله صلى اللّٰه عليه و سلم فإنه ما حجر كما قلنا و هذا تنبيه من اللّٰه غريب في الموقع حيث لم يذم و لا حمد بل جعله مسكوتا عنه

(وصل في فصل ما يفعله الحاج في يوم التروية إذا كان طريقة على منى)

يوم التروية هو يوم الخروج إلى منى في اليوم الثامن من ذي الحجة و المبيت فيه و يصلي به الظهر و العصر و المغرب و العشاء و الفجر من اليوم التاسع الذي هو يوم عرفة تأسيا برسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم و أجمع العلماء على أن ذلك ليس بشرط في صحة الحج فإذا أصبح يوم عرفة غدا إلى عرفة و وقف بها

[الحاج بين علم الحرم و معرفة الحل]

لما وصل الحاج إلى البيت و نال من العلم بالله ما نال و نال في المبايعة و المصافحة ليمين اللّٰه تعالى ما يجده أهل اللّٰه في ذلك و حصل من المعارف الإلهية و طوافه بالبيت و سعيه و صلاته بمنى أراد اللّٰه أن يميز له ما بين العلم الذي حصل له في الموضع المحرم و بين المعرفة الإلهية التي يعطيه اللّٰه في الحل و هو عرفة فإن معرفة الحل تعطي رفع التحجير عن العبد و هو في حال إحرامه محجور عليه لأنه محرم بالحج فيجمع في عرفة بين معرفته بالله من حيث ما هو محرم و بين معرفة اللّٰه من حيث ما هو في الحل لأن معرفة اللّٰه في الحرم و هو محرم معرفة مناسبة النظير فإنه بالإحرام محجور عليه و بالحرم محجور عليه و هذا خلاف حكم عرفة فإنه محرم في حل فهو في عرفة أبعد مناسبة و أشد مشقة لأنه تقابل ضد و تمييز فإنه لم يحرم الحل بإحرام الحاج و لم يحل الحاج من إحرام بإحلال الموضع فلم يؤثر أحدهما في الآخر فتميز العبد بالحجر لبقائه على إحرامه ليس فيه من الحق المختار شيء و تميز الحق بالحل أنه غير محجور عليه فهو يفعل ما يريد لما يتوهمه الوهم بدليل العقل أن الحق يحكم على الفعل منه علمه به فما يبدل و هذا نقيض الاختيار فأشبه المحجور عليه فيحصل له في عرفة في الحل معرفة إزالة هذا لتحجير الذي أثبته الوهم بدليل العقل فإنه في هذا الموطن من العلم بالله ساوى الوهم العقل فحجر على اللّٰه و جعلاه تحت حكم علمه في الشيء في مذهب من يرى أن العلم صفة زائدة على ذاته قائمة به تحكم على ذاته بحسب ما تعلقت به فمن قال إن علمه ذاته لا يلزمه هذا و هذه معرفة بالله بديعة عجيبة لا يعرف قدرها إلا من عرفها

[يوم الحج الأكبر يوم الحصول على الأمر النهارى و التجلي الليلى]

فلما أراد الحاج حصول هذه المعرفة مر في طريقه بمنى و هو موضع الحج الأكبر و أراد أن يذوق طعمه قبل الوقوف بعرفة إذ كان مرجعه إليه يوم النحر و هو يوم الحج الأكبر فإنه في ذلك الزمان الأول يجتمع فيه من وقف بعرفة و من وقف بالمزدلفة فكان معظم الحاج بمنى فصلى بها و بات ليذوق ذلك في حكم النهار و حكم الليل فيحصل بين الأمر النهاري و التجلي الليلي و ما يحصل في أوقات الصلوات من الأمر الخاص في هذا الموطن حتى يرى إذا رجع إليها بعد الوقوف هل يتساوى الذوق في ذلك أو يتغير عليه الحال لتأثير عرفة و المزدلفة فيه فكان مبيته و قعوده بمنى حالة اختيار و تمحيص ليكون من ذلك على علم في المال بخلاف المعرف فإنه لا يحصل له ذلك فلا يعرف هل يتغير حكم منى بعد عرفة عن حكمه قبل عرفة أم لا فهذا كان سبب ذلك



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