الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و أما الإطعام في الكفارة فالطعام سبب في حفظ الحياة على متناولة فهو في الإطعام متخلق بالاسم المحيي لما أمات بما فعله عبادة لا مثل لها كان عليها فكان منعوتا بالمميت في فعلها لأنه تعمد ذلك فأمر بالإطعام ليظهر اسم المقابل الذي هو المحيي فافهم

[صوم شهرين و سير النفس في المنازل الإلهية]

و أما صوم شهرين في كفارته فالشهر عبارة في المحمديين عن استيفاء سير القمر في المنازل المقدرة و ذلك سير النفس في المنازل الإلهية فالشهر الواحد يسير فيها بنفسه ليثبت ربوبية خالقه عليه عند نفسه و الشهر الآخر يسير فيه بربه فإنه رجله التي يسعى بها من باب أن الحق جميع قواه و جوارحه فإنه بقواه قطع هذه المنازل و الحق عين قواه فقطعها بربه لا بنفسه

[من الصوم أتى على]

و أما قول هذا الفاعل لرسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم حين أمره بالصوم في الكفارة أي اتصف بصفة الحق فإن الصوم له فقال من الصوم أتى علي فضحك رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فضحكه علامة على خفة الأمر و لما علم إن الحق أنطقه و ما أراد ذلك الناطق و إن جهله ذلك الأعرابي فكأنه قال له في قوله كفر بالصوم أي كن حقا فنطق إن يقول من الحق أتى علي فإني لما كنت حقا زال التكليف عني فإن الحق لا يكلف فلما ذا تبقيني حقا أنزلني إلى العبودية فأوجب على الكفارة التي هي الستر أي لا تذكر أنك عصيتني بي

[ما بين لابتيها أفقر منى]

و لهذا قال للنبي صلى اللّٰه عليه و سلم أ تعطيها لأفقر مني ما بين لابتيها أفقر مني فأضاف كمال الفقر إليه لأنه رجع إلى العبودية عن سيادته فعظم ذله و فقره فإن استصحاب الفقر لا ألم في الفقير مثل ألم من كان غنيا ثم يفتقر فإن ألمه أشد و الحسرة عنده أعظم فإن حكمه حكم من استؤسر و كان حرا فيجد ألم الاسترقاق لكونه حصل فيه عن حرية

من كان ملكا فعاد ملكا *** قد حاز هلكا و مات فتكا

و العبد الأصلي المؤثل القن لا يجد ذلك فلهذا قال ما بين لابتيها أفقر مني أنطقه اللّٰه بذلك من حيث لا يشعر حتى يكون مناسبا لما أنطقه به أيضا في قوله من الصوم أتى علي



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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