الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و لنا واقعة في مثل هذا كنت عند موسى بن محمد القباب بالمنارة بحرم مكة بباب الحزورة و كان يؤذن بها و كان له طعام يتأذى برائحته كل من شمه و سمعت في الخبر النبوي أن الملائكة تتأذى مما يتأذى منه بنو آدم و نهي أن تقرب المساجد برائحة الثوم و البصل و الكراث فبت و أنا عازم أن أقول لذلك الرجل أن يزيل ذلك الطعام من المسجد لأجل الملائكة فرأيت الحق تعالى في النوم فقال لي عزَّ وجلَّ لا تقل له عن الطعام فإن رائحته عندنا ما هي مثل ما هي عندكم فلما أصبح جاء على عادته إلينا فأخبرته بما جرى فبكى و سجد لله شكرا ثم قال لي يا سيدي و مع هذا فالأدب مع الشرع أولى فازاله من المسجد رحمه اللّٰه

[الروائح الخبيثة تنفر عنها الأمزجة السليمة]

و لما كانت الروائح الكريهة الخبيثة تنفر عنها الأمزجة الطبيعية السليمة من إنسان و ملك لما يحسونه من التأذي لعدم المناسبة فإن وجه الحق في الروائح الخبيثة لا يدركه إلا اللّٰه خاصة و من فيه مزاج القبول له من الحيوان أو الإنسان الذي له مزاج ذلك الحيوان لا ملك و لهذا قال عند اللّٰه فإن الصائم أيضا من كونه إنسانا سليم المزاج يكره خلوف الصوم من نفسه و من غيره و هل يتحقق أحد من المخلوقين السالمين المزاج بربه وقتا ما أو في مشهد ما فيدرك الروائح الخبيثة طيبة على الإطلاق ما سمعنا بهذا و قولي على الإطلاق من أجل أن بعض الأمزجة يتأذى بريح المسك و الورد و لا سيما المحرور المزاج و ما يتأذى منه فليس بطيب عند صاحب ذلك المزاج فلهذا قلنا على الإطلاق إذا الغالب على الأمزجة طيب المسك و الورد و أمثاله و المتأذي من هذه الروائح الطيبة مزاج غريب أي غير معتاد و لا أدري هل أعطى اللّٰه أحدا إدراك تساوى الروائح بحيث أن لا يكون عنده خبث رائحة أم لا هذا ما ذقناه من أنفسنا و لا نقل إلينا إن أحدا أدرك ذلك بل المنقول عن الكمل من الناس و عن الملائكة التأذي بهذه الروائح الخبيثة و ما انفرد بإدراك ذلك طيبا إلا الحق هذا هو المنقول و لا أدري أيضا شأن الحيوان من غير الإنسان في ذلك ما هو لأني ما أقامني الحق في صورة حيوان غير إنسان كما أقامني في أوقات في صور ملائكته و اللّٰه أعلم



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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