الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فإذا حصلت هذه الأرض في يد المسلم أعني الشرع و انتقلت إليه فالمسلمون على قسمين عارف و غير عارف فالعارف إذا زرع الأعمال الصالحة في هذه الأرض رأى أن الزكاة حق العمل لا حق الأرض فأوجب الزكاة في العمل و هو أن يرد الأعمال إلى عاملها و هو الحق سبحانه و غير العارف يرى أن العمل للقوى البدنية و قد وجب عليها الخراج فلا تجب عنده الزكاة حتى لا يجتمع عليها حقان فإنه لا يرى العمل إلا لنفسه فإنه غير عارف و لم يكلف اللّٰه نفسا إلا ما آتاها و قال ﴿ذٰلِكَ مَبْلَغُهُمْ مِنَ الْعِلْمِ﴾ [ النجم:30]

[لا يبعد أن يجتمع في الأرض حقان]

و أما قولنا في هذه المسألة فإنه يجتمع في الأرض حقان و لا يبعد ذلك لأن الأرض من كونها بيد من هي بيده يمنع غيره من التصرف فيها إلا بإذنه فعليه حق فيها يسمى الخراج و من حيث إنه زرعها فاختلف حال الأرض بكونها قد زرعت من كونها لم تزرع فوجب فيها حق آخر من كونها ذات زرع فوجب العشر فيها من كونها مزدرعة و وجب الخراج فيها من كونها بيده و حكمه عليها و كذلك نأخذه في الاعتبار

(وصل)و أما أرض العشر إذا انتقلت إلى الذمي فزرعها

فمن قائل ليس فيها شيء أعني لا خراج و لا عشر و قال النعمان إذا اشترى الذمي أرض عشر تحولت أرض خراج فكأنه رأى أن العشر حق أرض المسلمين و الخراج حق أرض الذميين و من يرى هذا فينبغي إن أرض الذمي إذا انتقلت إلى المسلم أن تعود أرض عشر

(اعتبار ذلك)

للعقل حكم في النفس من حيث ذاته و نظره و للشرع حكم في النفس فإذا سلب العقل النفس من يد الشرع بشبهة اشتراها بها فهل يقبل اللّٰه منه كل عمل حمد صورته الشرع و لكن كان عمله من جهة العقل لا من جهة الشرع فمنا من قال يقبل و يجازى عليه في الدنيا إن لم يكن موحدا و كان مشركا فإن كان موحدا قبل منه و جوزي عليه جزاء غير المؤمن



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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