الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[اغتسال النبي بالصاع و وضوؤه بالمد]

و «قال صلى اللّٰه عليه و سلم فيمن زاد على ثلاث مرات في الوضوء أنه قد أساء و تعدى و ظلم و جعله موقتا من واحدة إلى ثلاث و كره الإسراف في الماء في الغسل و الوضوء و كان رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم يغتسل بالصاع و يتوضأ بالمد»

(وصل منه)
و الذين أوجبوا التوقيت فيه اختلفوا

فمنهم من أوجب الوتر أي وتر كان و منهم من أوجب الثلاثة فقط و منهم من حد أقل الوتر في ذلك و لم يحد الأكثر فقال لا ينقص من الثلاث و منهم من حد الأكثر فقال لا يتجاوز السبعة و منهم من استحب الوتر و لم يحد فيه حدا

(الاعتبار) [الوتر في الغسل واجب لأنه عبادة]

أما الوتر في الغسل فواجب لأنه عبادة و من شرطها الحضور مع اللّٰه فيها و هو الوتر فينبغي أن يكون الغسل وتر الحكم الحال و هو من واحد إلى سبعة فإن زاد فهو إسراف إذا وقعت به الطهارة فوتريته في الغسل بحسب ما يخطر له في حال الغسل و هي سبع صفات أمهات فيها وقع الكلام بين أهل النظر في الإلهيات و هي الحياة و العلم و القدرة و الإرادة و الكلام و السمع و البصر

[غسل صفات العبد بصفات الرب]

و العبد قد وصف بهذه الصفات كلها و «قد ورد أن الحق قال في المتقرب بالنوافل إن اللّٰه يكون سمعه و بصره» و غير ذلك فقد تبدلت نسبة هذه الصفات المخلوقة للعبد بالحق فبالله يسمع و به يبصر و به يعلم و به يقدر و به يكون حيا و به يريد و به يتكلم فقد غسل صفاته بربه فكان طاهرا مقدسا بصفاته

[اغسل الميت منك بمثل هذا الغسل]

فهذا توقيت غسل الميت من واحد إلى سبعة بحسب ما ينقص و يزيد و قد عم هذا جميع ما وقع من الخلاف في شفعه و وتره و قليله و كثيره وحده و ترك حده ففكر فيه و اغسل الميت منك بمثل هذا الغسل و الكامل مع الناقص كالعاقل المؤمن مع العاقل وحده أو مع المؤمن



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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