الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿إِنَّمٰا يُؤْمِنُ بِآيٰاتِنَا الَّذِينَ إِذٰا ذُكِّرُوا بِهٰا خَرُّوا سُجَّداً وَ سَبَّحُوا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَ هُمْ لاٰ يَسْتَكْبِرُونَ﴾ [ السجدة:15] إن حرف تحقيق و تنكير يقول إن الذي يصدق بآياتنا أنها آيات نصبن لها دلالات على وجودنا و صدق إرسالنا ما هي عن همم النفوس عند جمعيتها هم ﴿اَلَّذِينَ إِذٰا ذُكِّرُوا بِهٰا﴾ [ السجدة:15] و التذكر لا يكون إلا عن علم غفل عنه أو نسيان من عاقل

[آيات اللّٰه دلالات نصبن على وجوده]

ف‌ ﴿إِنَّمٰا يَتَذَكَّرُ أُولُوا الْأَلْبٰابِ﴾ [الرعد:19] يقول إنها مدركة بالنظر العقلي إنها دلالات على ما نصبناها عليه فإذا ذكروا بها وقعوا على وجوههم أي حرصوا على معرفة ذواتهم فنزهوا ربهم بما نزه به نفسه على السنة رسله و لم يعطهم العلم الأنفة عن ذلك

[ما يعطيه النظر و ما يعطيه الإيمان]

فمن سجد هذه السجدة و لم يقف على مدارك عقله و لم يفرق بين ما يعطيه نظره و بين ما يعطيه إيمانه فينزه ربه إيمانا لا عقلا و يأخذ العلم و الحكمة حيث وجدها و لا ينظر إلى المحل الذي جاء بها و إن العاقل يعرف الرجال بالحق و غير العاقل يعرف الحق بالرجال و هذا من أكبر أغاليط النظر فإن المعنى الذي يندرج في اللفظ الذي يقصد به المتكلم إيضاح أمر هو في الحق المطلوب يقبله الجاهل من الرسول إذا جاء به و يحيله و يرده من الوارث و الولي إذا جاء به فلو قبل العلم لذات العلم لكان ممن تذكر

[طبقات الناس الثلاثة في قبول القرآن]

فإن اللّٰه تعالى يقول في حق ما أنزل من القرآن إن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم يخاطب به ثلاث طبقات من الناس فهو في حق طائفة بلاغ يسمعون حروفه إيمانا بها أنها من عند اللّٰه لا يعرفون غير ذلك و طائفة تلاه عليها ﴿لِيَدَّبَّرُوا آيٰاتِهِ﴾ [ص:29]



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