الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 181 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

قد سهموا أن يجهلوا حق من *** قد سخر اللّٰه له العالمين

كيف لهم و علمهم إنني *** ابن الذي خروا له ساجدين

و اعترفوا بعد اعتراض على *** والدنا بكونهم جاهلين

و أبلس الشخص الذي قد أبي *** و كان للفضل من الجاحدين

قد سهموا قد سهموا إنهم *** قد عصموا من خطأ المخطئين

قلت ثم صرفت عنه وجه قلبي و أقبلت به على ربي فقال لي انتصرت لأبيك حلت بركتي فيك اسمع منزلة من أثنيت عليها و ما قدمته من الخير بين يديها و أين منزلتك من منازل الملائكة المقربين صلوات اللّٰه عليكم و عليهم أجمعين كعبتي هذه قلب الوجود و عرشي لهذا القلب جسم محدود و ما وسعني واحد منهما و لا أخبر عني بالذي أخبرت عنهما و بيتي الذي وسعني قلبك المقصود المودع في جسدك المشهود فالطائفون بقلبك الأسرار فهم بمنزلة أجسادكم عند طوافها بهذه الأحجار فالطائفون الحافون بعرشنا المحيط كالطائفين منك بعالم التخطيط فكما إن الجسم منك في الرتبة دون قلبك البسيط كذلك هي الكعبة مع العرش المحيط فالطائفون بالكعبة بمنزلة الطائفين بقلبك لاشتراكهما في القلبية و الطائفون بجسمك كالطائفين بالعرش لاشتراكهما في الصفة الإحاطية فكما أن عالم الأسرار الطائفين بالقلب الذي وسعني أسنى منزلة من غيرهم و أعلى كذلك أنتم بنعت الشرف و السيادة على الطائفين بالعرش المحيط أولى فإنكم الطائفون بقلب وجود العالم فأنتم بمنزلة أسرار العلماء و هم الطائفون بجسم العالم فهم بمنزلة الماء و الهواء فكيف تكونون سواء و ما وسعني سواكم و ما تجليت في صورة كمال إلا في معناكم فاعرفوا قدر ما وهبتكموه من الشرف العالي و بعد هذا فأنا الكبير المتعالي لا يحدني الحد و لا يعرفني السيد و لا العبد تقدست الألوهة فتنزهت أن تدرك و في منزلتها أن تشرك أنت الأنا و أنا فلا تطلبني فيك فتعنى و لا من خارج فما تتهنى و لا تترك طلبي فتشقى فاطلبني حتى تلقاني فترقى و لكن تأدب في طلبك و احضر عند شروعك في مذهبك و ميز بيني و بينك فإنك لا تشهدني و إنما تشهد عينك فقف في صفة الاشتراك و إلا فكن عبدا و قل العجز عن درك الإدراك إدراك تلحق في ذلك عتيقا و تكن المكرم الصديقا ثم قال لي اخرج عن حضرتي فمثلك لا يصلح لخدمتي فخرجت طريدا فضج الحاضر فقال



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!