الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1644 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ لِيَتَذَكَّرَ أُولُوا الْأَلْبٰابِ﴾ [ص:29] و قال ﴿وَ ذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرىٰ تَنْفَعُ الْمُؤْمِنِينَ﴾ [الذاريات:55]

[الأذان قبل الصبح هو ذكر بصورة أذان]

و إنما ذهبنا إلى أن الأذان قبل الصبح هو ذكر و نداء بصورة الأذان ما هو الأذان المشروع بالإعلام لدخول الوقت «أن النبي صلى اللّٰه عليه و سلم قال إن بلالا ينادي بليل و لم يقل يؤذن و كذا قال في ابن أم مكتوم ينادي لموضع الشبهة» فإنه كان أعمى فكان لا ينادي حتى يقال له أصبحت أصبحت أي قاربت الصباح قال الراوي و كان بين نداء بلال و نداء ابن أم مكتوم قدر ما ينزل هذا و يصعد هذا فسماه نداء لهذا الاحتمال أعني أذان ابن أم مكتوم فإن الفصاحة في لسان العرب تطابق الألفاظ في سبق لما قال في بلال إنه ينادي بليل و يؤيد ما ذهبنا إليه حديث ابن عمر إن بلالا أذن قبل طلوع الفجر فسماه ابن عمر أذانا لما عرف من قرينة الحال فأمره رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم أن يرجع فينادي ألا إن العبد نام ليعرف الناس أن وقت الصلاة ما دخل فإن الأذان المشروع إنما هو لدخول وقت الصلاة فلما عرف من بلال أنه قصد الأذان و أن السامعين ربما أوقعوا الصلاة في غير وقتها أمره أن يعرف الناس أنه قد غلط في أذانه و لهذا يكون من المؤذنين بالليل الدعاء و التذكير و تلاوة آيات من القرآن و المواعظ و إنشاد الشعر المزهد في الدنيا المذكر الموت و الدار الآخرة ليعلم الناس إذا سمعوا الأذان منهم أنهم يريدون بذلك ذكر اللّٰه كما تقدم و أنه لإيقاظ النائمين لا لدخول الوقت و يكون لدخول الوقت مؤذن خاص يعرف بصوته و كذا هو في الاعتبار لتنوع الأحوال على أهل اللّٰه لا بد لهم من علامات يفرقون بها بين الأحوال التي تعطيها الأسماء الإلهية فافهم

(فصول في الشروط في هذه العبادة)

[اختلاف الفقهاء في شروط الأذان]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!