الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1341 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و هي نشأة الأبناء في الأرحام مساقط النطف و مواقع النجوم فكنى عن ذلك بالقرار المكين ﴿ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظٰاماً فَكَسَوْنَا الْعِظٰامَ لَحْماً﴾ [المؤمنون:14] و قد تم البدن على التفصيل فإن اللحم يتضمن العروق و الأعصاب

و في كل طور له آية *** تدل على إنني مفتقر

ثم أجمل خلق النفس الناطقة الذي هو بها إنسان في هذه الآية فقال ﴿ثُمَّ أَنْشَأْنٰاهُ خَلْقاً آخَرَ﴾ [المؤمنون:14]

[مرتبة الجسد و مرتبة الروح]

عرفك بذلك أن المزاج لا أثر له في لطيفتك و إن لم يكن نصا لكن هو ظاهر و أبين منه قوله ﴿فَسَوّٰاكَ فَعَدَلَكَ﴾ [الإنفطار:7] و هو ما ذكره في التفصيل من التقلب في الأطوار فقال ﴿فِي أَيِّ صُورَةٍ مٰا شٰاءَ رَكَّبَكَ﴾ [الإنفطار:8] فقرنه بالمشيئة فالظاهر أنه لو اقتضى المزاج روحا خاصا معينا ما قال ﴿فِي أَيِّ صُورَةٍ مٰا شٰاءَ﴾ [الإنفطار:8] و أي حرف نكرة مثل حرف ما فإنه حرف يقع على كل شيء فأبان لك أن المزاج لا يطلب صورة بعينها و لكن بعد حصولها تحتاج إلى هذا المزاج و ترجع به فإنه بما فيه من القوي التي لا تدبره إلا بها فإنه بقواه لها كالآلات لصانع النجارة أو البناء مثلا إذا هيئت و أتقنت و فرغ منها تطلب بذاتها و حالها صانعا يعمل بها ما صنعت له و ما تعين زيدا و لا عمرا و لا خالدا و لا واحدا بعينه فإذا جاء من جاء من أهل الصنعة مكنته الآلة من نفسها تمكينا ذاتيا لا تتصف بالاختيار فيه فجعل يعمل بها صنعته بصرف كل آلة لما هيئت له فمنها مكملة و هي المخلقة يعني التامة الخلقة و منها غير مكملة و هي غير المخلقة فينقص العامل من العمل على قدر ما نقص من جودة الآلة ذلك ليعلم أن الكمال الذاتي لله سبحانه فبين لك الحق مرتبة جسدك و روحك لتنظر و تفتكر فتعتبر أن اللّٰه ما خلقك سدى و إن طال المدى

[القصد و النية في الطهارة]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!