الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

دخلت على شيخنا أبي العباس العريبي من أهل العليا و كان مستهترا بذكر الاسم اللّٰه لا يزيد عليه شيئا فقلت له يا سيدي لم لا تقول لا إله إلا اللّٰه فقال لي يا ولدي الأنفاس بيد اللّٰه ما هي بيدي فأخاف أن يقبض اللّٰه روحي عند ما قول لا له فأقبض في وحشة النفي و سألت شيخنا آخر عن ذلك فقال لي ما رأت عيني و لا سمعت أذني من يقول أنا اللّٰه غير اللّٰه فلم أجد من أنفى فأقول كما سمعته يقول اللّٰه اللّٰه و إنما تعبدنا بهذا الاسم في التوحيد لأنه الاسم الجامع المنعوت بجميع الأسماء الإلهية و ما نقل إنه وقعت من أحد من المعبودين فيه مشاركة بخلاف غيره من الأسماء مثل إله و غيره و بهذا القدر من القول إذا قيل لقول الشارع يثبت الايمان و إنما قال الشارع حتى يقولوا لا إله إلا اللّٰه و لم يقل محمد رسول اللّٰه لتضمن هذه الشهادة بالتوحيد الشهادة بالرسالة فإن القائل لا إله إلا اللّٰه لا يكون مؤمنا إلا إذا قالها لقول رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فإذا قالها لقوله فهو عين إثبات رسالته فلما تضمنت هذه الكلمة الخاصة الشهادة بالرسالة لهذا لم يقل قولوا محمد رسول اللّٰه و قال في غير القول و هو الايمان و الايمان معنى من المعاني ما هو مما يدرك بالحس فقرن بالإيمان بالله الايمان به و بما جاء به يعني من عنده مما له أن يشرعه من غير نقل عن اللّٰه «فقال في حديث ابن عمر لما ذكر الايمان بالله و بالصلاة و الزكاة و الحج و الصوم و كل هذا جاء من عند اللّٰه قال في حديث ابن عمر أمرت أن أقاتل الناس حتى يشهدوا أن لا إله إلا اللّٰه و يؤمنوا بي و بما جئت به» من أجل المنافق المقلد فإنه يقولها من غير إيمان بقلبه و لا اعتقاد و الجاحد المنافق يقولها لا لقوله مع علمه بأنه رسول اللّٰه من كتابه لا من دليله العقلي



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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